पूछने कि हम्मत भी नहीं होती अब कहाँ हो कैसी हो क्या सुनी जा सकती है फोन पर तुम्हारी आवाज़ क्या पूछने पर किसी से पता चल सकता है तुम्हारा ठौर-ठिकाना मै भेजता पुराने दिनों कि तरह कबूतर के पंजे से बंधी एक चिट्ठी कहने की हिम्मत नही होती दया करो खत खटटर खटटर चल… Continue reading तस्लीमा नसरीन : पांच / अग्निशेखर
Tag: कविता
तस्लीमा नसरीन : चार / अग्निशेखर
जैसे हम कर चुके हों जीते जी अपना क्रिया-कर्म और अब मृत्युंजय नागरिक हैं जैसे हम आए हों कुछ दिनों के लिए अपने ही देश में सैलानियाँ कि तरह और हमें किसी से क्या लेना देना जैसे हमने युद्ध में डाल दिए हों हथियार और अब हो जो हो निर्विरोध तुम भी नहीं जानती थीं… Continue reading तस्लीमा नसरीन : चार / अग्निशेखर
तस्लीमा नसरीन : तीन / अग्निशेखर
परदे के पीछे कोई कर रहा तय हमारा होना या न होना परदे के पीछे लिखी जा रही धमकियाँ सजाये जा रहे बम परदे के पीछे बे-पर्दा हैं लोग जानते हैं हम सभ्यता इसी में मौन रहें हम
तस्लीमा नसरीन : दो / अग्निशेखर
उठाए उसने अभिव्यक्ति के खतरे उठाया हमने सिर पर आकाश उधेडी उसने सीवन सी लिए हमने होठ उसने कहा लज्जा ! हमने कहा – खास नहीं उस पर मंडराए बादल हमने खोलीं छतरियां उसने मांगी शरण हमने दी काल-कोठरी वह बुदबुदाती रही कोलकाता कोलकाता फुटनोट चली गई हमारे देश से बाला तली हमारे देश से
तस्लीमा नसरीन : एक / अग्निशेखर
तुमने क्यों सुनी आत्मा की चीत्कार तुम्हे छोड़ना नहीं पड़ता रगों में बहता अपना सुनहला देश यहाँ कितने लोगो की आई लाज अपनी ख़ामोशी पर मुझे नहीं मिला कोई भी दोस्त जिसने तुम्हारे आत्मघाती प्रेम पर की हो कोई बात मै हूँ स्वयं भी जलावतन और लज्जित भी कि तुम्हारे लिए कर नहीं सका मै… Continue reading तस्लीमा नसरीन : एक / अग्निशेखर
भूलने के विरुद्ध / अग्निशेखर
कहा तुमने यों तो साफ़ थीं दीवारें अलबत्ता दो लाचार हाथों के फिसले हुए निशान थे नीचे ज़मीन तक सरक आये कोई नहीं था वहाँ दीवार के सामने सिर्फ थी गोली चलने की अदीख घटना और थी खड़ी भूल जाने के विरुद्ध चुप दीवार कहा तुमने यहीं से शुरू होती है तुम्हारी कविता
सौतेले दिनों की कविता / अग्निशेखर
मेरा दुःख उन्हें असुविधा में दाल देता है मुझे नहीं आना चाहिए था इसे साथ लेकर वे हो जाते हैं निरुत्तर और यह उनके लिए कितने बड़े दुःख की बात है उनके यहाँ दुःख था एक चुने हुए मुद्दे की तरह मुश्किल से हाथ आया हुआ ये उस पर रात दिन लिख रहे थे कवितायेँ… Continue reading सौतेले दिनों की कविता / अग्निशेखर
शांति वार्ता / अग्निशेखर
हमसे कहा उन्होंने नहीं करें अब रिसते घावों की बात शत्रु को नहीं देखें संशय और संदेह से मिलने पर करें नही प्रश्न कोई उल्टा-सीधा ज़रूरी है भरोसा करें फिर से और धैर्य रखें बदल रही है हवा-नवा आर-पार दौड़ने लगी हैं समझौता बसें गलत थे युद्ध गलत थी हिंसा आरोप-प्रत्यारोप मै पूछता हूँ कब… Continue reading शांति वार्ता / अग्निशेखर
गृह मंत्रालय में चूहेदानी / अग्निशेखर
हमें बुलाया गया सुरक्षा जांच के लिए एक एक कर पहुंचे हम उनके सामने शिकायतों से लैस धर्म और आतंक के सताए जलावतनी से बौखलाए दीवार पर राष्ट्रपिता हँस रहे थे मूंछों के पीछे शायद हम पर गृह मानती हैं विराजमान अंक रहे हमारी नब्ज़ दंग रह गया मैं थी उनकी कुर्सी के नीचे एक… Continue reading गृह मंत्रालय में चूहेदानी / अग्निशेखर
सपने में बर्फ / अग्निशेखर
मेरे दोस्त ने सपने में सुने मुझे कविता – ‘मास्को में हिमपात’ मैंने दिखा मेरी पहुँच से ऊंचे शेल्फ पर टी.वी. में आने लगे हिमपात के दौरान कश्मीर जैसे दृश्य लेकिन उन्हें बताया जा रहा था मास्को अपने से थे गाँव बर्फ़ लदे मकान बिजली की तारों पर बर्फ़ की रेखाएं सड़क किनारे धंसी हुई… Continue reading सपने में बर्फ / अग्निशेखर