हमारे पास कुछ नहीं जाओ अब हमारे पास कुछ नहीं बीते सत-जगों की सर्द राख में इक शरार भी नहीं दाग़ दाग़ ज़िंदगी पे सोच के लिबास का एक तार भी नहीं धड़क धड़क धड़क धड़क जाने थाप कब पड़े नंगे वहशियों के ग़ोल शहर की सड़क सड़क पे नाच उठें मूली गाजरों की तरह… Continue reading टूरिस्ट / क़ाज़ी सलीम
दर्द-ए-दिल कुछ कहा नहीं जाता / ‘क़ाएम’ चाँदपुरी
दर्द-ए-दिल कुछ कहा नहीं जाता आह चुप भी रहा नहीं जाता रू-ब-रू मेरे गैर से तू मिले ये सितम तो सहा नहीं जाता शिद्दत-ए-गिर्या से मैं ख़ून में कब सर से पा तक नहा नहीं जाता हर दम आने से मैं भी हूँ नादिम क्या करूँ पर रहा नहीं जाता माना-ए-गिर्या किस की ख़ू है… Continue reading दर्द-ए-दिल कुछ कहा नहीं जाता / ‘क़ाएम’ चाँदपुरी
दर्द पी लेते हैं और दाग़ पचा जाते हैं / ‘क़ाएम’ चाँदपुरी
दर्द पी लेते हैं और दाग़ पचा जाते हैं याँ बला-नोश हैं जो आए चढ़ा जाते हैं देख कर तुम को कहीं दूर गए हम लेकिन टुक ठहर जाओ तो फिर आप में आ जाते हैं जब तलक पाँव में चलने की है ताकत बाकी हाल-ए-दिल आ के कभू तुझ को दिखा जाते हैं कौन… Continue reading दर्द पी लेते हैं और दाग़ पचा जाते हैं / ‘क़ाएम’ चाँदपुरी
बुलबुल सुने न क्यूँके कफस में चमन की बात / क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’
बुलबुल सुने न क्यूँके कफस में चमन की बात आवार-ए-वतन को लगे खुश वतन की बात ऐश ओ तरब का जिक्र करूँ क्या मैं दोस्तो मुझ गम-ज़दा से पूछिए रंज ओ महन की बात शायद उसी का जिक्र हो हर रह-गुजर में मैं सुनता हूँ गोश-ए-दिल से हर इक मर्द ओ जन की बात ‘जुरअत’… Continue reading बुलबुल सुने न क्यूँके कफस में चमन की बात / क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’
ऐ दिला हम हुए पाबंद-ए-गम-ए-यार के तू / क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’
ऐ दिला हम हुए पाबंद-ए-गम-ए-यार के तू अब अज़ीय्यत में भला हम हैं गिरफ्तार के तू हम तो कहते थे न आशिक हो अब इतना तो बता जा के हम रोते हैं पहरों पस-ए-दीवार के तू हाथ क्यूँ इश्क-ए-बुताँ से न उठाया तू ने कफ-ए-अफसोस हम अब मलते हैं हर बार के तू वही महफिल… Continue reading ऐ दिला हम हुए पाबंद-ए-गम-ए-यार के तू / क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’
दिल-ए-दीवाना अर्ज़-ए-हाल पर माइल तो क्या होगा / ‘क़ाबिल’ अजमेरी
दिल-ए-दीवाना अर्ज़-ए-हाल पर माइल तो क्या होगा मगर वो पूछे बैठे खुद ही हाल-ए-दिल क्या होगा हमारा क्या हमें तो डूबना है डूब जाएँगे मगर तूफान जा पहुँचा लब-ए-साहिल तो क्या होगा शराब-ए-नाब ही से होश उड़ जाते है इन्सां के तेरा कैफ-ए-नजर भी हो गया शामिल तो क्या होगा खिरद की रह-बरी ने तो… Continue reading दिल-ए-दीवाना अर्ज़-ए-हाल पर माइल तो क्या होगा / ‘क़ाबिल’ अजमेरी
तुम्हें जो मेरे गम-ए-दिल से आगाही हो जाए / ‘क़ाबिल’ अजमेरी
तुम्हें जो मेरे गम-ए-दिल से आगाही हो जाए जिगर में फूल खिलें आँख शबनमी हो जा अजला भी उस की बुलंदी को छू नहीं सकती वो जिंदगी जिसे एहसास-ए-जिंदगी हो जाए यही है दिल की हलाकत यही है इश्क की मौत निगाए-ए-दोस्त पे इजहार-ए-बेकसी हो जाए ज़माना दोस्त है किस किस को याद रक्खोगे खुदा… Continue reading तुम्हें जो मेरे गम-ए-दिल से आगाही हो जाए / ‘क़ाबिल’ अजमेरी
बऊ बाज़ार / पंकज पराशर
यहाँ आई तो थी किसी एक की बनकर ही लेकिन बऊ बाज़ार में अब किसी एक की बऊ नहीं रही मैं ओ माँ! अब तो उसकी भी नहीं जिसने सबके सामने कुबूल, कुबूल,कुबूल कहकर कुबूल किया था निकाह और दस सहस्र टका मेहर भी भरी महफ़िल में उसने कितने सब्ज़बाग दिखाए थे तुम्हें बाबा को… Continue reading बऊ बाज़ार / पंकज पराशर
हस्त चिन्ह / पंकज पराशर
बनारस के घाटों को देखते हुए पुरखों के पदचिन्ह पर चलने वालों कभी उनके हस्तचिन्हों को देखकर चलो तो समझ सकोगे हाथ दुनिया को कितना सुंदर बना सकते हैं ख़ैबर दर्रा से आए धनझपटू हाथ जब मचा रहे थे तबाही वे बना रहे थे मुलायम सीढ़ियाँ सुंदर-सुंदर घाट और मिला रहे थे गंगा की निर्मलता… Continue reading हस्त चिन्ह / पंकज पराशर
चोर और चोर / पंकज चौधरी
पूस का महीना था और पूरबा सायँ-सायँ करती हुई बेमौसम की बरसात झहरा रही थी जो जीव-जंतुओं की हड्डियों में छेद कर जाती थी और उसे उस बीच चैराहे पर उस रोड़े और पत्थर बिछी हुई रोड पर बूटों की नोंक पर फुटबॉल की तरह उछाल दिया जाता था तत्पश्चात् उसकी फ्रैक्चर हो चुकी हुई… Continue reading चोर और चोर / पंकज चौधरी