वायरस / क़ाज़ी सलीम

मसीह-ए-वक़्त तुम बताओ क्या हुआ ज़बाँ पे ये कसीला-पन कहाँ से आ गया ज़रा सी देर के लिए पलक झपक गई तो राख किस तरह झड़ी सुना है दूर देस से कुछ ऐसे वायरस हमारे साहिलों पे आ गए जिन के ताब-कार-ए-सहर के लिए अमृत और ज़हर एक हैं अब किसी के दरमियान कोई राब्ता… Continue reading वायरस / क़ाज़ी सलीम

रूस्तगारी / क़ाज़ी सलीम

ज़ख़्म फिर हरे हुए फिर लहू तड़प तड़प उठा अंधे रास्तों पे बे-तकान उड़ान के लिए बंद आँख की बहिश्त में सब दरीचे सब किवाड़ खुल गए और फिर अपनी ख़ल्क़ की हुई बसीत काएनात में धुँद बन के फैलता सिमटता जा रहा हूँ मैं ख़ुदा-ए-लम-यज़ल के साँस की तरह मेरे आगे आगे इक हुजूम… Continue reading रूस्तगारी / क़ाज़ी सलीम

टूरिस्ट / क़ाज़ी सलीम

हमारे पास कुछ नहीं जाओ अब हमारे पास कुछ नहीं बीते सत-जगों की सर्द राख में इक शरार भी नहीं दाग़ दाग़ ज़िंदगी पे सोच के लिबास का एक तार भी नहीं धड़क धड़क धड़क धड़क जाने थाप कब पड़े नंगे वहशियों के ग़ोल शहर की सड़क सड़क पे नाच उठें मूली गाजरों की तरह… Continue reading टूरिस्ट / क़ाज़ी सलीम