इधर से अब्र उठकर जो गया है हमारी ख़ाक पर भी रो गया है मसाइब और थे पर दिल का जाना अजब इक सानीहा सा हो गया है मुकामिर-खाना-ऐ-आफाक वो है के जो आया है याँ कुछ खो गया है सरहाने ‘मीर’ के आहिस्ता बोलो अभी टुक रोते-रोते सो गया है
था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था / मीर तक़ी ‘मीर’
था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था ख़ुर्शीद में भी उस ही का ज़र्रा ज़हूर था[1] हंगामा गर्म कुन[2] जो दिले-नासुबूर[3] था पैदा हर एक नाला-ए-शोरे-नशूर था[4] पहुँचा जो आप को तो मैं पहुँचा खुदा के तईं मालूम अब हुआ कि बहोत मैं भी दूर था आतिश बुलन्द दिल की न थी वर्ना ऐ… Continue reading था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था / मीर तक़ी ‘मीर’
दिल-ऐ-पुर खूँ की इक गुलाबी से/ मीर तक़ी ‘मीर’
दिल-ऐ-पुर खूँ की इक गुलाबी से उम्र भर हम रहे शराबी से दिल दहल जाए है सहर से आह रात गुज़रेगी किस खराबी से खिलना कम कम कली ने सीखा है उस की आंखों की नीम-ख्वाबी से काम थे इश्क में बहुत से ‘मीर’ हम ही फ़ारिग हुए शिताबी से
देख तो दिल कि जाँ से उठता है / मीर तक़ी ‘मीर’
देख तो दिल कि जाँ से उठता है ये धुआं सा कहाँ से उठता है गोर किस दिल-जले की है ये फलक शोला इक सुबह याँ से उठता है खाना-ऐ-दिल से ज़िन्हार न जा कोई ऐसे मकान से उठता है नाला सर खेंचता है जब मेरा शोर एक आसमान से उठता है लड़ती है उस… Continue reading देख तो दिल कि जाँ से उठता है / मीर तक़ी ‘मीर’
गम रहा जब तक कि दम में दम रहा / मीर तक़ी ‘मीर’
ग़म रहा जब तक कि दम में दम रहा दिल के जाने का निहायत ग़म रहा दिल न पहुँचा गोशा-ए-दामन तलक क़तरा-ए-ख़ूँ था मिज़्हा[1] पे जम रहा जामा-ए-अहराम-ए-जाहिद[2] पर न जा था हरम[3] में लेक ना-महरम[4] रहा ज़ुल्फ़ खोले तू जो टुक[5] आया नज़र उम्र भर याँ काम-ए-दिल बरहम[6] रहा उसके लब से तल्ख़[7] हम… Continue reading गम रहा जब तक कि दम में दम रहा / मीर तक़ी ‘मीर’
अश्क आंखों में कब नहीं आता / मीर तक़ी ‘मीर’
अश्क आंखों में कब नहीं आता लहू आता है जब नहीं आता। होश जाता नहीं रहा लेकिन जब वो आता है तब नहीं आता। दिल से रुखसत हुई कोई ख्वाहिश गिरिया कुछ बे-सबब नहीं आता। इश्क का हौसला है शर्त वरना बात का किस को ढब नहीं आता। जी में क्या-क्या है अपने ऐ हमदम… Continue reading अश्क आंखों में कब नहीं आता / मीर तक़ी ‘मीर’
बेखुदी कहाँ ले गई हमको / मीर तक़ी ‘मीर’
बेखुदी कहाँ ले गई हमको, देर से इंतज़ार है अपना रोते फिरते हैं सारी सारी रात, अब यही रोज़गार है अपना दे के दिल हम जो गए मजबूर, इस मे क्या इख्तियार है अपना कुछ नही हम मिसाल-ऐ- उनका लेक शहर शहर इश्तिहार है अपना जिसको तुम आसमान कहते हो, सो दिलो का गुबार है… Continue reading बेखुदी कहाँ ले गई हमको / मीर तक़ी ‘मीर’
फ़कीराना आए सदा कर चले / मीर तक़ी ‘मीर’
फ़क़ीराना आए सदा कर चले मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले कोई ना-उम्मीदाना करते निगाह सो तुम हम से मुँह भी छिपा कर चले बहोत आरजू थी गली की तेरी सो याँ से लहू में नहा कर… Continue reading फ़कीराना आए सदा कर चले / मीर तक़ी ‘मीर’
हस्ती अपनी होबाब की सी है / मीर तक़ी ‘मीर’
हस्ती अपनी हुबाब की सी है । ये नुमाइश सराब की सी है ।। नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए, हर एक पंखुड़ी गुलाब की सी है । चश्म-ए-दिल खोल इस आलम पर, याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है । बार-बार उस के दर पे जाता हूँ, हालत अब इज्तेराब की सी है… Continue reading हस्ती अपनी होबाब की सी है / मीर तक़ी ‘मीर’
अपने तड़पने की / मीर तक़ी ‘मीर’
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का। यह ऐश के नहीं हैं या रंग और कुछ है हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का। बुलबुल ग़ज़ल सराई आगे हमारे मत कर सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का।