था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था / मीर तक़ी ‘मीर’

था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था
ख़ुर्शीद में भी उस ही का ज़र्रा ज़हूर था[1]

हंगामा गर्म कुन[2] जो दिले-नासुबूर[3] था
पैदा हर एक नाला-ए-शोरे-नशूर था[4]

पहुँचा जो आप को तो मैं पहुँचा खुदा के तईं
मालूम अब हुआ कि बहोत मैं भी दूर था

आतिश बुलन्द दिल की न थी वर्ना ऐ कलीम[5]
यक शोला बर्क़े-ख़िरमने-सद[6]कोहे-तूर[7] था

हम ख़ाक में मिले तो मिले लेकिन ऐ सिपहर[8]
उस शोख़ को भी राह पे लाना ज़रूर था

मजलिस[9] में रात एक तेरे परतवे[10] बग़ैर
क्या शम्म क्या पतंग[11]हर एक बे-हज़ूर[12] था

मूनिम[13] के पास क़ाक़िमो-सिंजाब[14] था तो क्या
उस रिन्द की भी रात कटी जोकि ऊर[15] था

कल पाँव एक कासा-ऐ-सर[16] पर जो आ गया
यक-सर वो इस्तख़्वान[17] शिकस्तों[18] चूर था

कहने लगा के देख के चल राह बे-ख़बर
मैं भी कभू[19] किसी का सर-ऐ-पुर-ग़ुरूर[20] था

था वो तो रश्क-ए-हूर-ए-बहिश्ती हमीं[21] में ‘मीर’
समझे न हम तो फ़हम[22] का अपने क़सूर था

शब्दार्थ:
1. पृथ्वी का सारा सौँदर्य उसी (प्रभु)की कृपा का प्रकाश है,उसी का दैवी कण सूर्य को प्रकाशमान किए हुए है
2. तूफान मचा हुआ था
3. बेकल हृदय
4. प्रलय के दिन वाला प्रलाप
5. मित्र
6. हज़ारों बिजलियों
7. Mount Sinai वो पहाड़ जहाँ मूसा को दिव्य-दर्शन हुए थे
8. आकाश
9. सभा
10. प्रकाशमान उपस्थिति
11. परवाना
12. अनाथ
13. धनवान
14. मख़मल और ज़री
15. वस्त्र-हीन/चीथड़ों में
16. खोपड़ी
17. हज़ारों
18. थपेड़ों
19. कभी
20. गर्वोन्मत्त मस्तक
21. ऐसा सौंदर्य जो स्वर्ग की अप्सराओं के लिए भी ईर्ष्या का विषय है, हम में ही है
22. समझ

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