धूप से लिपटे हुए धुएँ सरीखे केश, सब लहरा रहे हैं प्राण तेरे स्कंध पर !! यह नदी, यह घाट, यह चढ़ती दुपहरी सब तुझे पहचानते हैं । सुबह से ही घाट तुझको जोहता है, नदी तक को पूछती है, दोपहर, उन पर झुंझकुरों से उठ तुझे गोहारती है । यह पवन, यह धूप, यह… Continue reading अनपहचाना घाट / श्रीकांत वर्मा
भटका मेघ (कविता) / श्रीकांत वर्मा
भटक गया हूँ— मैं असाढ़ का पहला बादल श्वेत फूल-सी अलका की मैं पंखुरियों तक छू न सका हूँ किसी शाप से शप्त हुआ दिग्भ्रमित हुआ हूँ। शताब्दियों के अंतराल में घुमड़ रहा हूँ, घूम रहा हूँ। कालिदास मैं भटक गया हूँ, मोती के कमलों पर बैठी अलका का पथ भूल गया हूँ। मेरी पलकों… Continue reading भटका मेघ (कविता) / श्रीकांत वर्मा
सिखां दे राज दी विथिया /श्रद्धा राम फिल्लौरी
श्रद्धा राम फिल्लौरी / पं. श्रध्दाराम ने पंजाबी (गुरूमुखी) में ‘सिक्खां दे राज दी विथियाँ ‘ पुस्तक लिखी । अपनी पहली ही किताब ‘सिखों दे राज दी विथिया’ से वे पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। इस पुस्तक मे सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित… Continue reading सिखां दे राज दी विथिया /श्रद्धा राम फिल्लौरी
ओम जय जगदीश हरे / श्रद्धा राम फिल्लौरी
(1) ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट दास जनों के संकट क्षण में दूर करे ॐ जय जगदीश हरे (2) जो ध्यावे फल पावे दुख बिनसे मन का स्वामी दुख बिनसे मन का सुख सम्मति घर आवे सुख सम्मति घर आवे कष्ट मिटे तन का ॐ जय जगदीश हरे… Continue reading ओम जय जगदीश हरे / श्रद्धा राम फिल्लौरी
सत्य धर्म मुक्तावली / सामान्य पारिचय / श्रद्धा राम फिल्लौरी
फुल्लौरी जी के शिष्य श्री तुलसीदेव संगृहीत भजनसंग्रह सत्य धर्म मुक्तावली तीन भागो मे विभक्त है 1. प्रथम भाग में ठुमरियाँ, बिसन पदे, दूती पद हैं; 2. द्वितीय में रागानुसार भजन हैं; , 3. तीसरे और अंत में एक पंजाबी बारामाह हैं;
तुम्हें भी आँख में तब क्या नमी महसूस होती है ? / श्रद्धा जैन
ख़ुशी बेइंतहा जब भी कभी महसूस होती है तुम्हें भी आँख में तब क्या नमी महसूस होती है ? कभी फुरकत भी जाँ परवर लगे, होता है ऐसा भी कभी कुर्बत में कुर्बत की कमी महसूस होती है मिले शोहरत, मिले दौलत, तमन्ना कोई पूरी हो ख़ुशी कैसी भी हो, बस दो घड़ी महसूस होती… Continue reading तुम्हें भी आँख में तब क्या नमी महसूस होती है ? / श्रद्धा जैन
न मंज़िल का, न मकसद का , न रस्ते का पता है / श्रद्धा जैन
न मंज़िल का, न मकसद का , न रस्ते का पता है हमेशा दिल किसी के पीछे ही चलता रहा है थे बाबस्ता उसी से ख्वाब, ख्वाहिश, चैन सब कुछ ग़ज़ब, अब नींद पर भी उसने कब्ज़ा कर लिया है बसा था मेरी मिट्टी में , उसे कैसे भुलाती मगर देखो न आखिर ये करिश्मा… Continue reading न मंज़िल का, न मकसद का , न रस्ते का पता है / श्रद्धा जैन
प्रानी किआ मेरा किआ तेरा / रैदास
।। राग सोरठी।। प्रानी किआ मेरा किआ तेरा। तैसे तरवर पंखि बसेरा।। टेक।। जल की भीति पवन का थंभा। रकत बंुद का गारा। हाड़ मास नाड़ी को पिंजरू। पंखी बसै बिचारा।।१।। राखहु कंध उसारहु नीवां। साढ़े तीनि हाथ तेरी सीवां।।२।। बंके बाल पाग सिर डेरी। इहु तनु होइगो भसम की ढेरी।।३।। ऊचे मंदर सुंदर नारी।… Continue reading प्रानी किआ मेरा किआ तेरा / रैदास
माधवे तुम न तोरहु तउ हम नहीं तोरहि / रैदास
।। राग सोरठी।। माधवे तुम न तोरहु तउ हम नहीं तोरहि। तुम सिउ तोरि कवन सिउ जोरहि।। टेक।। जउ तुम गिरिवर तउ हम मोरा। जउ तुम चंद तउ हम भए है चकोरा।।१।। जउ तुम दीवरा तउ हम बाती। जउ तुम तीरथ तउ हम जाती।।२।। साची प्रीति हम तुम सिउ जोरी। तुम सिउ जोरि अवर संगि… Continue reading माधवे तुम न तोरहु तउ हम नहीं तोरहि / रैदास
हरि हरि हरि न जपहि रसना / रैदास
।। राग सोरठी।। हरि हरि हरि न जपहि रसना। अवर सम तिआगि बचन रचना।। टेक।। सुख सागरु सुरतर चिंतामनि कामधेनु बसि जाके। चारि पदारथ असट दसा सिधि नवनिधि करतल ताके।।१।। नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अखर माँही। बिआस बिचारि कहिओ परमारथु राम नाम सरि नाही।।२।। सहज समाधि उपाधि रहत फुनि बड़ै भागि लिव लागी।… Continue reading हरि हरि हरि न जपहि रसना / रैदास