धूप से लिपटे हुए धुएँ सरीखे केश, सब लहरा रहे हैं प्राण तेरे स्कंध पर !! यह नदी, यह घाट, यह चढ़ती दुपहरी सब तुझे पहचानते हैं । सुबह से ही घाट तुझको जोहता है, नदी तक को पूछती है, दोपहर, उन पर झुंझकुरों से उठ तुझे गोहारती है । यह पवन, यह धूप, यह… Continue reading अनपहचाना घाट / श्रीकांत वर्मा
Category: Shreekant Verma
भटका मेघ (कविता) / श्रीकांत वर्मा
भटक गया हूँ— मैं असाढ़ का पहला बादल श्वेत फूल-सी अलका की मैं पंखुरियों तक छू न सका हूँ किसी शाप से शप्त हुआ दिग्भ्रमित हुआ हूँ। शताब्दियों के अंतराल में घुमड़ रहा हूँ, घूम रहा हूँ। कालिदास मैं भटक गया हूँ, मोती के कमलों पर बैठी अलका का पथ भूल गया हूँ। मेरी पलकों… Continue reading भटका मेघ (कविता) / श्रीकांत वर्मा