अब्र हैं दीदा-ए-पुर-आब से हम / वज़ीर अली ‘सबा’ लखनवी

अब्र हैं दीदा-ए-पुर-आब से हम बर्क़ हैं दिल के इजि़्तराब से हम सौ तरह की गरज़ निकलती है क्यूँ न मतलब रखें जनाब से हम दम में मौज-ए-फना मिटा देगी बहर-ए-हस्ती में हैं हुबाब से हम बे-वफाओं से है वफ़ा मतलूब तालिब-ए-आब हैं सराब से हम जिंदगी हो गई अज़ाब हमें गुज़रे ज़ाहिद तेरे सवाब… Continue reading अब्र हैं दीदा-ए-पुर-आब से हम / वज़ीर अली ‘सबा’ लखनवी

आज़िम-ए-दश्त-ए-जुनूँ हो के मैं घर से उट्ठा / वज़ीर अली ‘सबा’ लखनवी

आज़िम-ए-दश्त-ए-जुनूँ हो के मैं घर से उट्ठा फिर बहार आई क़दम फिर नए सिरे से उट्ठा उम्र भर दिल न मेरा यार के घर से उट्ठा बैठा दीवार के निचे जो मैं दर से उट्ठा सबब-ए-रहमत-ए-हक़ हो गया मैं तर-दामन अब्र छाया जो धुआँ नार-ए-सक़र से उट्ठा हो गया आलम-ए-बाला से भी बाला पानी जब… Continue reading आज़िम-ए-दश्त-ए-जुनूँ हो के मैं घर से उट्ठा / वज़ीर अली ‘सबा’ लखनवी