जीने का तेरे ग़म ने सलीक़ा सिखा दिया दिल पर लगी जो चोट तो मैं मुस्कुरा दिया टकरा रहा हूँ सैल-ए-ग़म-ए-रोज़गार से चश्म-ए-करम ने हौसला-ए-दिल बढ़ा दिया अब मुझ से ज़ब्त-ए-शौक़ का दामन न छूट जाए उन की नज़र ने आज तकल्लुफ़ उठा दिया अपनी निगाह में भी सुबुक हो रहा था मैं अच्छा हुआ… Continue reading जीने का तेरे ग़म ने सलीक़ा सिखा दिया / ‘उनवान’ चिश्ती
Category: Unwan Chishti
जल्वों के बाँक-पन में न रानाइयों में है / ‘उनवान’ चिश्ती
जल्वों के बाँक-पन में न रानाइयों में है वो एक बात जो तेरी अंगड़ाईयों में है ख़ुद तुझ से कोई ख़ास तआरूफ़ नहीं जिसे इक ऐसा शख़्स भी तेरे सौदाइयों में है महसूस कर रहा हूँ रगें टूटती हुई पोशीदा एक हश्र उन अँगड़ाइयों में है रक़्साँ नफ़स-नफ़स है फ़रोज़ाँ नज़र नज़र ये कौन जलवा-जा… Continue reading जल्वों के बाँक-पन में न रानाइयों में है / ‘उनवान’ चिश्ती
जब ज़ुल्फ़ शरीर हो गई है / ‘उनवान’ चिश्ती
जब ज़ुल्फ़ शरीर हो गई है ख़ुद अपनी असीर हो गई है जन्नत के मुक़ाबले में दुनिया आप अपनी नज़ीर हो गई है जो बात तिरी ज़बाँ से निकली पत्थर की लकीर हो गई है होंटों पे तिरे हँसी मचल कर जल्वों की लकीर हो गई है जो आह मिरी ज़बाँ से निकली अर्जुन का… Continue reading जब ज़ुल्फ़ शरीर हो गई है / ‘उनवान’ चिश्ती
इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे हैं / ‘उनवान’ चिश्ती
इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे हैं होश के दौर में भी जामा-दरी माँगे हैं हाए आग़ाज-ए-मोहब्बत में वो ख़्वाबों के तिलिस्म जिंदगी फिर वही आईना-गरी माँगे हैं दिल जलाने पे बहुत तंज न कर ऐ नादाँ शब-ए-गेसू भी जमाल-ए-सहरी माँगे हैं मैं वो आसूदा-ए-जल्वा हूँ कि तेरी ख़ातिर हर कोई मुझ से मिरी ख़ुश-नज़री… Continue reading इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे हैं / ‘उनवान’ चिश्ती
हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे / ‘उनवान’ चिश्ती
हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे जिंदगी चौंक पड़ी हो जैसे हाए ये लम्हा तेरी याद के साथ कोई रहमत की घड़ी हो जैसे राह रोके हुए इक मुद्दत से कोई दोशीज़ा खड़ी हो जैसे उफ़ ये ताबानी-ए-माह-ओ-अंजुम रात सेहरे की लड़ी हो जैसे उन को देखा तो हुआ ये महसूस जान में जान पड़ी… Continue reading हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे / ‘उनवान’ चिश्ती
दिल का हर ज़ख़्म मोहब्बत का निशाँ हो जैसे / ‘उनवान’ चिश्ती
दिल का हर ज़ख़्म मोहब्बत का निशाँ हो जैसे देखने वालों को फूलों का गुमाँ हो जैसे तेरे क़ुर्बां ये तेरे इश्क़ में क्या आलम है हर नज़र मेरी तरफ़ ही निगराँ हो जैसे यूँ तेरे क़ुर्ब की फिर आँच सी महसूस हुई आज फिर शोला-ए-एहसास जवाँ हो जैसे तीर पर तीर बरसते हैं मगर… Continue reading दिल का हर ज़ख़्म मोहब्बत का निशाँ हो जैसे / ‘उनवान’ चिश्ती