Category: Suryakant Tripathi ‘Nirala’
सरोज स्मृति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ २
> अगला पृष्ठ
सरोज स्मृति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ १
ऊनविंश पर जो प्रथम चरण तेरा वह जीवन-सिन्धु-तरण; तनये, ली कर दृक्पात तरुण जनक से जन्म की विदा अरुण! गीते मेरी, तज रूप-नाम वर लिया अमर शाश्वत विराम पूरे कर शुचितर सपर्याय जीवन के अष्टादशाध्याय, चढ़ मृत्यु-तरणि पर तूर्ण-चरण कह – “पित:, पूर्ण आलोक-वरण करती हूँ मैं, यह नहीं मरण, ‘सरोज’ का ज्योति:शरण – तरण!”… Continue reading सरोज स्मृति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ १
मरण को जिसने वरा है / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
मरण को जिसने वरा है उसी का जीवन भरा है परा भी उसकी, उसी के अंक सत्य यशोधरा है । सुकृत के जल से विसिंचित कल्प-किंचित विश्व-उपवन, उसी की निस्तन्द्र चितवन चयन करने को हरा है । गिरीपताक उपत्यका पर हरित तृण से घिरी तन्वी जो खड़ी है वह उसी की पुष्पभरणा अप्सरा है ।… Continue reading मरण को जिसने वरा है / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
गहन है यह अन्ध कारा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
गहन है यह अण्ध कारा; स्वार्थ के अवगुण्ठनों से हुआ है लुण्ठन हमारा । खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर, बोलते हैं लोग ज्यों मुँह फेरकर, इस गगन में नहीं दिनकर, नहीं शशधर, नहीं तारा । कल्पना का ही अपार समुद्र यह, गरजता है घेरकर तनु, रुद्र यह, कुछ नहीं आता समझ में, कहाँ है… Continue reading गहन है यह अन्ध कारा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
मरण-दृश्य / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
कहा जो न, कहो ! नित्य – नूतन, प्राण, अपने गान रच-रच दो ! विश्व सीमाहीन; बाँधती जातीं मुझे कर कर व्यथा से दीन ! कह रही हो–“दुःख की विधि– यह तुम्हें ला दी नई निधि, विहग के वे पंख बदले,– किया जल का मीन; मुक्त अम्बर गया, अब हो जलधि-जीवन को !” सकल साभिप्राय;… Continue reading मरण-दृश्य / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
खुला आसमान / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
(गीत) बहुत दिनों बाद खुला आसमान! निकली है धूप, खुश हुआ जहान! दिखी दिशाएँ, झलके पेड़, चरने को चले ढोर–गाय-भैंस-भेड़, खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़– लड़कियाँ घरों को कर भासमान! लोग गाँव-गाँव को चले, कोई बाजार, कोई बरगद के पेड़ के तले जाँघिया-लँगोटा ले, सँभले, तगड़े-तगड़े सीधे नौजवान! पनघट में बड़ी भीड़ हो रही, नहीं ख्याल… Continue reading खुला आसमान / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
उत्साह / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
(गीत) बादल, गरजो!– घेर घेर घोर गगन, धाराधर जो! ललित ललित, काले घुँघराले, बाल कल्पना के-से पाले, विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले! वज्र छिपा, नूतन कविता फिर भर दो:– बादल, गरजो! विकल विकल, उन्मन थे उन्मन, विश्व के निदाघ के सकल जन, आये अज्ञात दिशा से अनन्त के घन! तप्त धरा, जल से फिर… Continue reading उत्साह / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
उक्ति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
कुछ न हुआ, न हो मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल पास तुम रहो! मेरे नभ के बादल यदि न कटे- चन्द्र रह गया ढका, तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे लेश गगन-भास का, रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम हाथ यदि गहो। बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा– मन्द सबों ने कहा,… Continue reading उक्ति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
तोड़ती पत्थर / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
वह तोड़ती पत्थर; देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर- वह तोड़ती पत्थर। कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार; श्याम तन, भर बंधा यौवन, नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, गुरु हथौड़ा हाथ, करती बार-बार प्रहार:- सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार। चढ़ रही थी धूप; गर्मियों के दिन, दिवा का तमतमाता रूप; उठी झुलसाती… Continue reading तोड़ती पत्थर / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”