वीणानिन्दित वाणी बोल! संशय-अन्धकामय पथ पर भूला प्रियतम तेरा– सुधाकर-विमल धवल मुख खोल! प्रिये, आकाश प्रकाशित करके, शुष्ककण्ठ कण्टकमय पथ पर छिड़क ज्योत्स्ना घट अपना भर भरके! शुष्क हूँ–नीरस हूँ–उच्छ्श्रृखल– और क्या क्या हूँ, क्या मैं दूँ अब इसका पता, बता तो सही किन्तु वह कौन घेरनेवाली बाहु-बल्लियों से मुझको है एक कल्पना-लता! अगर वह… Continue reading प्रलाप / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
Category: Suryakant Tripathi ‘Nirala’
दान / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
वासन्ती की गोद में तरुण, सोहता स्वस्थ-मुख बालारुण; चुम्बित, सस्मित, कुंचित, कोमल तरुणियों सदृश किरणें चंचल; किसलयों के अधर यौवन-मद रक्ताभ; मज्जु उड़ते षट्पद। खुलती कलियों से कलियों पर नव आशा–नवल स्पन्द भर भर; व्यंजित सुख का जो मधु-गुंजन वह पुंजीकृत वन-वन उपवन; हेम-हार पहने अमलतास, हँसता रक्ताम्बर वर पलास; कुन्द के शेष पूजार्ध्यदान, मल्लिका… Continue reading दान / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
सम्राट एडवर्ड अष्टम के प्रति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
वीक्षण अगल:- बज रहे जहाँ जीवन का स्वर भर छन्द, ताल मौन में मन्द्र, ये दीपक जिसके सूर्य-चन्द्र, बँध रहा जहाँ दिग्देशकाल, सम्राट! उसी स्पर्श से खिली प्रणय के प्रियंगु की डाल-डाल! विंशति शताब्दि, धन के, मान के बाँध को जर्जर कर महाब्धि ज्ञान का, बहा जो भर गर्जन– साहित्यिक स्वर– “जो करे गन्ध-मधु का… Continue reading सम्राट एडवर्ड अष्टम के प्रति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
मित्र के प्रति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
(1) कहते हो, ‘‘नीरस यह बन्द करो गान- कहाँ छन्द, कहाँ भाव, कहाँ यहाँ प्राण ? था सर प्राचीन सरस, सारस-हँसों से हँस; वारिज-वारिज में बस रहा विवश प्यार; जल-तरंग ध्वनि; कलकल बजा तट-मृदंग सदल; पैंगें भर पवन कुशल गाती मल्लार।’’ (2) सत्य, बन्धु सत्य; वहाँ नहीं अर्र-बर्र; नहीं वहाँ भेक, वहाँ नहीं टर्र-टर्र। एक… Continue reading मित्र के प्रति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
प्रेयसी / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
घेर अंग-अंग को लहरी तरंग वह प्रथम तारुण्य की, ज्योतिर्मयि-लता-सी हुई मैं तत्काल घेर निज तरु-तन। खिले नव पुष्प जग प्रथम सुगन्ध के, प्रथम वसन्त में गुच्छ-गुच्छ। दृगों को रँग गयी प्रथम प्रणय-रश्मि- चूर्ण हो विच्छुरित विश्व-ऐश्वर्य को स्फुरित करती रही बहु रंग-भाव भर शिशिर ज्यों पत्र पर कनक-प्रभात के, किरण-सम्पात से। दर्शन-समुत्सुक युवाकुल पतंग… Continue reading प्रेयसी / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
गीत / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
जैसे हम हैं वैसे ही रहें, लिये हाथ एक दूसरे का अतिशय सुख के सागर में बहें। मुदें पलक, केवल देखें उर में,- सुनें सब कथा परिमल-सुर में, जो चाहें, कहें वे, कहें। वहाँ एक दृष्टि से अशेष प्रणय देख रहा है जग को निर्भय, दोनों उसकी दृढ़ लहरें सहें।