अपराजिता / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

(गीत) हारीं नहीं, देख, आँखें– परी नागरी की; नभ कर गंई पार पाखें परी नागरी की। तिल नीलिमा को रहे स्नेह से भर जगकर नई ज्योति उतरी धरा पर, रँग से भरी हैं, हरी हो उठीं हर तरु की तरुण-तान शाखें; परी नागरी की– हारीं नहीं, देख, आँखें।

वसन्त की परी के प्रति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

(गीत) आओ, आओ फिर, मेरे बसन्त की परी– छवि-विभावरी; सिहरो, स्वर से भर भर, अम्बर की सुन्दरी- छबि-विभावरी; बहे फिर चपल ध्वनि-कलकल तरंग, तरल मुक्त नव नव छल के प्रसंग, पूरित-परिमल निर्मल सजल-अंग, शीतल-मुख मेरे तट की निस्तल निझरी– छबि-विभावरी; निर्जन ज्योत्स्नाचुम्बित वन सघन, सहज समीरण, कली निरावरण आलिंगन दे उभार दे मन, तिरे नृत्य… Continue reading वसन्त की परी के प्रति / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

नर्गिस / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

बीत चुका शीत, दिन वैभव का दीर्घतर डूब चुका पश्चिम में, तारक-प्रदीप-कर स्निग्ध-शान्त-दृष्टि सन्ध्या चली गई मन्द मन्द प्रिय की समाधि-ओर, हो गया है रव बन्द विहगों का नीड़ों पर, केवल गंगा का स्वर सत्य ज्यों शाश्वत सुन पड़ता है स्पष्ट तर, बहता है साथ गत गौरव का दीर्घ काल प्रहत-तरंग-कर-ललित-तरल-ताल। चैत्र का है कृष्ण… Continue reading नर्गिस / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

राम की शक्ति पूजा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ ५

कहकर देखा तूणीर ब्रह्मशर रहा झलक, ले लिया हस्त, लक-लक करता वह महाफलक। ले अस्त्र वाम पर, दक्षिण कर दक्षिण लोचन ले अर्पित करने को उद्यत हो गये सुमन जिस क्षण बँध गया बेधने को दृग दृढ़ निश्चय, काँपा ब्रह्माण्ड, हुआ देवी का त्वरित उदय- “साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम!” कह, लिया भगवती… Continue reading राम की शक्ति पूजा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ ५

राम की शक्ति पूजा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ ४

कुछ समय तक स्तब्ध हो रहे राम छवि में निमग्न, फिर खोले पलक कमल ज्योतिर्दल ध्यान-लग्न। हैं देख रहे मन्त्री, सेनापति, वीरासन बैठे उमड़ते हुए, राघव का स्मित आनन। बोले भावस्थ चन्द्रमुख निन्दित रामचन्द्र, प्राणों में पावन कम्पन भर स्वर मेघमन्द्र, “देखो, बन्धुवर, सामने स्थिर जो वह भूधर शोभित शत-हरित-गुल्म-तृण से श्यामल सुन्दर, पार्वती कल्पना… Continue reading राम की शक्ति पूजा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ ४

राम की शक्ति पूजा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ ३

कितना श्रम हुआ व्यर्थ, आया जब मिलनसमय, तुम खींच रहे हो हस्त जानकी से निर्दय! रावण? रावण लम्पट, खल कल्म्ष गताचार, जिसने हित कहते किया मुझे पादप्रहार, बैठा उपवन में देगा दुख सीता को फिर, कहता रण की जय-कथा पारिषद-दल से घिर, सुनता वसन्त में उपवन में कल-कूजित पिक मैं बना किन्तु लंकापति, धिक राघव,… Continue reading राम की शक्ति पूजा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ ३

राम की शक्ति पूजा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ २

फिर देखी भीम मूर्ति आज रण देखी जो आच्छादित किये हुए सम्मुख समग्र नभ को, ज्योतिर्मय अस्त्र सकल बुझ बुझ कर हुए क्षीण, पा महानिलय उस तन में क्षण में हुए लीन; लख शंकाकुल हो गये अतुल बल शेष शयन, खिंच गये दृगों में सीता के राममय नयन; फिर सुना हँस रहा अट्टहास रावण खलखल,… Continue reading राम की शक्ति पूजा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ २

राम की शक्ति पूजा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ १

रवि हुआ अस्त; ज्योति के पत्र पर लिखा अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर आज का तीक्ष्ण शर-विधृत-क्षिप्रकर, वेग-प्रखर, शतशेलसम्वरणशील, नील नभगर्ज्जित-स्वर, प्रतिपल – परिवर्तित – व्यूह – भेद कौशल समूह राक्षस – विरुद्ध प्रत्यूह,-क्रुद्ध – कपि विषम हूह, विच्छुरित वह्नि – राजीवनयन – हतलक्ष्य – बाण, लोहितलोचन – रावण मदमोचन – महीयान, राघव-लाघव… Continue reading राम की शक्ति पूजा / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” / पृष्ठ १