चुप रहो मत / श्रीकृष्ण शर्मा

कुछ कहो मत, किन्तु ऐसे चुप रहो मत ! दर्द है तो कुछ कराहो, दुःखी हो आँसू बहाओ, क्षोभ है, चीख़ो ! मगर तुम इस तरह भीतर दहो मत ! मौन क़ातिल के लिए बल शोर उसकी भीति पाग़ल भीड़ का आक्रोश बन उभरो कि जो है मौत ! लेकिन यों अकेले तुम सलीबों को… Continue reading चुप रहो मत / श्रीकृष्ण शर्मा

तम में कोई नरभक्षी है / श्रीकृष्ण शर्मा

यह सूरज है, चित्र फलक तक ! पेड़ गए भीतर बंगलों में, सिर्फ प्रदूषण है क़त्लों में ! यह है आग कि जिससे बचना मुश्किल है अब उच्च फलक तक ! शहर नहीं केवल राहें हैं, धुआँ-धुँध है अफ़वाहें है, तम में कोई नरभक्षी है, घूर रहा जो मुझको अपलक ! सुन्दरता केवल फ़रेब है,… Continue reading तम में कोई नरभक्षी है / श्रीकृष्ण शर्मा