नवगीत – 6 / श्रीकृष्ण तिवारी

बांस वनों से गूंज सीटियों की आयी, सन्नाटे की झील पांव तक थर्रायी| अनदेखे हाथों ने लाकर चिपकाये दीवारों पर टूटे पंख तितलियों के, लहर भिगोकर कपड़े पोंछ गयी सारे दरवाजे पर उभरे चिन्ह उँगलियों के, खिड़की पर बैठे -बैठे मन भर आया द्वार बन्द कमरे में तबियत घबरायी| शीशे के जारों में बन्द मछलियों… Continue reading नवगीत – 6 / श्रीकृष्ण तिवारी

नवगीत – 5 / श्रीकृष्ण तिवारी

वक्त की आवाज़ पर फिर फेंकने दो एक पत्थर और शायद बन्द शीशे के घरों में लोग बाहर निकल आएं| देखता हूँ — रोपकर पीछे अँधेरा, बहुत आगे बढ़ गया है सूर्य का रथ उसे मुड़ना चाहिए अब| छोड़कर आकाश टूटे गुम्बदों में रह रहे हैं जो कबूतर उन्हें उड़ना चाहिए अब| सनसनाती हवा की… Continue reading नवगीत – 5 / श्रीकृष्ण तिवारी

नवगीत – 4 / श्रीकृष्ण तिवारी

कुछ के रुख दक्षिण कुछ वाम सूरज के घोड़े हो गए बेलगाम थोड़ी- सी तेज हुई हवा और हिल गई सड़क लुढ़क गया शहर एक ओर ख़ामोशी उतर गई केंचुल -सी माथे के उपर बहने लगा तेज धार पानी सा शोर अफ़वाहों के हाथों चेक की तरह भूनने लग गई आवारा सुबह और शाम पत्थर… Continue reading नवगीत – 4 / श्रीकृष्ण तिवारी

नवगीत – 3 / श्रीकृष्ण तिवारी

मीठी लगने लगी नीम की पत्ती -पत्ती लगता है यह दौर सांप का डसा हुआ है मुर्दा टीलों से लेकर जिन्दा बस्ती तक ज़ख्मी अहसासों की एक नदी बहती है हारे और थके पांवों ,टूटे चेहरों की ख़ामोशी से अनजानी पीड़ा झरती है एक कमल का जाने कैसा आकर्षण है हर सूरज कीचड़ में सिर… Continue reading नवगीत – 3 / श्रीकृष्ण तिवारी

नवगीत – 2 / श्रीकृष्ण तिवारी

भीलों ने बाँट लिए वन राजा को खबर तक नहीं पाप ने लिया नया जनम दूध की नदी हुई जहर गाँव, नगर धूप की तरह फैल गई यह नई ख़बर रानी हो गई बदचलन राजा को खबर तक नहीं कच्चा मन राजकुंवर का बेलगाम इस कदर हुआ आवारे छोरे के संग रोज खेलने लगा जुआ… Continue reading नवगीत – 2 / श्रीकृष्ण तिवारी

नवगीत – 1 / श्रीकृष्ण तिवारी

क्या हुए वे रेत पर उभरे नदी के पांव जिन्हें लेकर लहर आई थी हमारे गाँव आइना वह कहाँ जिसमें हम संवारे रूप रोशनी के लिए झेलें अब कहाँ तक धूप क्या हुई वह मोरपंखी बादलों की छाँव फूल पर नाखून के क्यों उभर आये दाग बस्तियों में एक जंगल बो गया क्यों आग वक्त… Continue reading नवगीत – 1 / श्रीकृष्ण तिवारी