सहमते स्वर-1 / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

जन्मा उन्नाव में मालवा में जा बसा लखनऊ लौटा तो नए नखत टँके दिखे वक़्त के गरेबाँ में। अनायास याद आई बूढ़ी जीवन संगिनी की जिसका सब रस लेकर आज भी मैं छलक रहा

मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझानेवाला / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

घर-आंगन में आग लग रही। सुलग रहे वन -उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर- छाजन। तन जलता है , मन जलता है जलता जन-धन-जीवन, एक नहीं जलते सदियों से जकड़े गर्हित बंधन। दूर बैठकर ताप रहा है, आग लगानेवाला, मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझानेवाला। भाई की गर्दन पर भाई का तन… Continue reading मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझानेवाला / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार आज सिन्धु ने विष उगला है लहरों का यौवन मचला है आज हृदय में और सिन्धु में साथ उठा है ज्वार तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार लहरों के स्वर में कुछ बोलो इस अंधड में साहस तोलो कभी-कभी मिलता जीवन में तूफानों का प्यार… Continue reading तूफानों की ओर घुमा दो नाविक / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

वरदान माँगूँगा नहीं / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

यह हार एक विराम है जीवन महासंग्राम है तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं। वरदान माँगूँगा नहीं।। स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिए अपने खंडहरों के लिए यह जान लो मैं विश्‍व की संपत्ति चाहूँगा नहीं। वरदान माँगूँगा नहीं।। क्‍या हार में क्‍या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं संधर्ष पथ पर जो… Continue reading वरदान माँगूँगा नहीं / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएँगे, कनक-तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाऍंगे। हम बहता जल पीनेवाले मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे, कहीं भली है कटुक निबोरी कनक-कटोरी की मैदा से, स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में अपनी गति, उड़ान सब भूले, बस सपनों में देख रहे हैं तरू की फुनगी पर के झूले। ऐसे थे… Continue reading हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

बात की बात / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

इस जीवन में बैठे ठाले ऐसे भी क्षण आ जाते हैं जब हम अपने से ही अपनी बीती कहने लग जाते हैं। तन खोया-खोया-सा लगता मन उर्वर-सा हो जाता है कुछ खोया-सा मिल जाता है कुछ मिला हुआ खो जाता है। लगता; सुख-दुख की स्‍मृतियों के कुछ बिखरे तार बुना डालूँ यों ही सूने में… Continue reading बात की बात / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

जल रहे हैं दीप, जलती है जवानी / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ / भाग ३

घिरी लंका के चारों ओर गहरा गूढ़ खाई थी इन्हीं गड्ढों से महलों की गगनभेदी ऊँचाई थी हज़ारों अस्मतों को लूटकर वह खिलखिलाता था स्वयं सूरज तमस से तुप गया था, तिलमिलाता था सभी भूखे थे नंगे थे, तबाही ही तबाही थी मगर अन्याय का प्रतिरोध करने की मनाही थी किसी ने न्याय माँगा तो… Continue reading जल रहे हैं दीप, जलती है जवानी / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ / भाग ३

जल रहे हैं दीप, जलती है जवानी / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ / भाग २

तुम मनाते हो जिसे कहकर दिवाली यह नहीं कोई प्रथा नूतन निराली आज भी जग में अमा की रात काली स्नेह से नव मृत्तिका के पात्र खाली अधर सूखे, गाल पिचके, दीन कोटरलीन आँखें शलभ बेसुध छटपटाते क्लिन्न मन विछिन्न पाँखें मुर्दनी वातावरण में धुएँ की घूर्णित घुटन-सी दर-ब-दर फैली हुई, बदबू विकट शव के… Continue reading जल रहे हैं दीप, जलती है जवानी / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ / भाग २

जल रहे हैं दीप, जलती है जवानी / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ / भाग १

दीप, जिनमें स्नेहकन ढाले गए हैं वर्तिकाएँ बट बिसुध बाले गए हैं वे नहीं जो आँचलों में छिप सिसकते प्रलय के तूफ़ान में पाले गए हैं एक दिन निष्ठुर प्रलय को दे चुनौती हँसी धरती मोतियों के बीज बोती सिंधु हाहाकार करता भूधरों का गर्व हरता चेतना का शव चपेटे, सृष्टि धाड़ें मार रोती एक… Continue reading जल रहे हैं दीप, जलती है जवानी / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ / भाग १

मृत्तिका दीप / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

मृत्तिका का दीप तब तक जलेगा अनिमेष एक भी कण स्नेह का जब तक रहेगा शेष। हाय जी भर देख लेने दो मुझे मत आँख मीचो और उकसाते रहो बाती न अपने हाथ खींचो प्रात जीवन का दिखा दो फिर मुझे चाहे बुझा दो यों अंधेरे में न छीनो- हाय जीवन-ज्योति के कुछ क्षीण कण… Continue reading मृत्तिका दीप / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’