पर आँखें नहीं भरीं / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

कितनी बार तुम्हें देखा पर आँखें नहीं भरीं। सीमित उर में चिर-असीम सौंदर्य समा न सका बीन-मुग्ध बेसुध-कुरंग मन रोके नहीं रुका यों तो कई बार पी-पीकर जी भर गया छका एक बूँद थी, किंतु, कि जिसकी तृष्णा नहीं मरी। कितनी बार तुम्हें देखा पर आँखें नहीं भरीं। शब्द, रूप, रस, गंध तुम्हारी कण-कण में… Continue reading पर आँखें नहीं भरीं / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

आभार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला उस उस राही को धन्यवाद। जीवन अस्थिर अनजाने ही हो जाता पथ पर मेल कहीं सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िल तय कर लेना कुछ खेल नहीं दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते सम्मुख चलता पथ का प्रमाद जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला उस उस राही को धन्यवाद। साँसों पर अवलम्बित काया जब… Continue reading आभार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ, पर तुम्हें भूला नहीं हूँ। चल रहा हूँ, क्योंकि चलने से थकावट दूर होती, जल रहा हूँ क्योंकि जलने से तमिस्त्रा चूर होती, गल रहा हूँ क्योंकि हल्का बोझ हो जाता हृदय का, ढल रहा हूँ क्योंकि ढलकर साथ पा जाता समय का। चाहता तो था कि रुक लूँ… Continue reading मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

विवशता / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार पथ ही मुड़ गया था। गति मिली, मैं चल पड़ा, पथ पर कहीं रुकना मना था राह अनदेखी, अजाना देश संगी अनसुना था। चाँद सूरज की तरह चलता, न जाना रात दिन है किस तरह हम-तुम गए मिल, आज भी कहना कठिन है। तन न आया माँगने अभिसार मन ही… Continue reading विवशता / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

सूनी साँझ / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

बहुत दिनों में आज मिली है साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम। पेड खडे फैलाए बाँहें लौट रहे घर को चरवाहे यह गोधुली, साथ नहीं हो तुम, बहुत दिनों में आज मिली है साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम। कुलबुल कुलबुल नीड़-नीड़ में चहचह चहचह मीड़-मीड़ में धुन अलबेली, साथ नहीं हो तुम, बहुत दिनों… Continue reading सूनी साँझ / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

पतवार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार। आज सिन्धु ने विष उगला है लहरों का यौवन मचला है आज ह्रदय में और सिन्धु में साथ उठा है ज्वार तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार। लहरों के स्वर में कुछ बोलो इस अंधड में साहस तोलो कभी-कभी मिलता जीवन में तूफानों का प्यार… Continue reading पतवार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

असमंजस / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

जीवन में कितना सूनापन पथ निर्जन है, एकाकी है, उर में मिटने का आयोजन सामने प्रलय की झाँकी है वाणी में है विषाद के कण प्राणों में कुछ कौतूहल है स्मृति में कुछ बेसुध-सी कम्पन पग अस्थिर है, मन चंचल है यौवन में मधुर उमंगें हैं कुछ बचपन है, नादानी है मेरे रसहीन कपालो पर… Continue reading असमंजस / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार पथ ही मुड़ गया था। गति मिली मैं चल पड़ा पथ पर कहीं रुकना मना था, राह अनदेखी, अजाना देश संगी अनसुना था। चांद सूरज की तरह चलता न जाना रात दिन है, किस तरह हम तुम गए मिल आज भी कहना कठिन है, तन न आया मांगने अभिसार मन… Continue reading मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

चलना हमारा काम है / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

गति प्रबल पैरों में भरी फिर क्यों रहूं दर दर खडा जब आज मेरे सामने है रास्ता इतना पडा जब तक न मंजिल पा सकूँ, तब तक मुझे न विराम है, चलना हमारा काम है। कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया कुछ बोझ अपना बँट गया अच्छा हुआ, तुम मिल गई कुछ रास्ता ही कट… Continue reading चलना हमारा काम है / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

सांसों का हिसाब / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

तुम जो जीवित कहलाने के हो आदी तुम जिसको दफ़ना नहीं सकी बरबादी तुम जिनकी धड़कन में गति का वन्दन है तुम जिसकी कसकन में चिर संवेदन है तुम जो पथ पर अरमान भरे आते हो तुम जो हस्ती की मस्ती में गाते हो तुम जिनने अपना रथ सरपट दौड़ाया कुछ क्षण हाँफे, कुछ साँस… Continue reading सांसों का हिसाब / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’