जियालाल रास मंडल मानिक चौक (जौनपुर) का एक रिक्शा वाला है सुबह के साथ चौराहे पर होने की बात करता है वह रिक्शा खड़ा करके हर गुज़रते आदमी की निग़ाह पढ़ता है शाम होने पर थका-हारा जाता है अपनी झोपडी में पत्नी- बच्चों की निग़ाह में खो जाती है उसकी थकान रचनाकाल : 1994, जौनपुर
Category: Sangya Singh
नमक / संज्ञा सिंह
बादलों धैर्य मत खोना अभी मेरे होंठों में नमी बरकरार है उमड़ते-घुमड़ते गरज़ते और दौड़ते रहना आँखों में झलक रहा है पानी अभी खाया हुआ नमक घुल रहा है रग-रग में संचरित हो रहा है ख़ून आँखें पठारी शक्ल अख़्तियार कर लें सूख जाएँ होंठ तब बरस जाना कि ज़िन्दगी भर घुलता रहे मेरी ही… Continue reading नमक / संज्ञा सिंह