उम्मीद / ऋतु पल्लवी

तुम्हारा प्यार डायरी के पन्ने पर स्याही की तरह छलक जाता है और मैं उसे समेट नहीं पाती मेरे मन की बंजर धरती उसे सोख नहीं पाती. रात के कोयले से घिस -घिस कर मांजती हूँ मैं रोज़ दिया पर तुम्हारे रोशन चेहरे की सुबह उसमे कभी देख नहीं पाती. सीधी राह पर चलते फ़कीर… Continue reading उम्मीद / ऋतु पल्लवी

मृत्यु / ऋतु पल्लवी

जब विकृत हो जाता है,हाड़-मांस का शरीर निचुड़ा हुआ निस्सार खाली हो जाता है संवेदना का हर आधार.. सोख लेता है वक्त भावनाओं को, सिखा देते हैं रिश्ते अकेले रहना (परिवार में) अनुराग,ऊष्मा,उल्लास,ऊर्जा,गति सबका एक-एक करके हिस्सा बाँट लेते हैं हम और आँख बंद कर लेते हैं. पूरे कर लेते हैं-अपने सारे सरोकार और निरर्थकता… Continue reading मृत्यु / ऋतु पल्लवी

मुस्काना / ऋतु पल्लवी

दो कलि सामान कोमल अधरों पर शांत चित्त की सहज कोर धर अलि की सरस सुरभि को भी हर प्रथम उषा की लाली भर कर स्निग्ध सरस सम बहता सीकर चिर आशा का अमृत पीकर साँसों की एक मंद लहर से कलि द्वय का स्पंदित हो जाना तभी उन्हीं के मध्य उभरते मुक्तक पंक्ति का… Continue reading मुस्काना / ऋतु पल्लवी

बंध / ऋतु पल्लवी

बंधन बांधते नहीं और बिखेरते ही हैं अपनी हर कड़ी में व्यथा को और उकेरते ही हैं . तुम हाथ से हाथ को बाँधते हो उसमें छिपी सृजनता को नहीं सींचते निर्निमेष दृष्टि के अथाह होना चाहते हो पर अन्धकार से भय है , यह हृदय पर कैसा विजय है? मन का मान कहाँ है ?… Continue reading बंध / ऋतु पल्लवी

शब्द नहीं कह पाते / ऋतु पल्लवी

कोई बिम्ब,कोई प्रतीक ,कोई उपमान नहीं समझ पाते ये भाव अनाम जैसे पूर्ण विराम के बाद शून्य-शून्य-शून्य और पाठक रुक कर कुछ सोचता है पर लेखक लिखता नहीं लेखक भी कहता है पर चुक जाते हैं शब्द समझने के लिए रीता अयाचित अंतराल . शब्दों की कोई इयत्ता नहीं,कोई सत्ता नहीं. असीम आकाश का निस्सीम… Continue reading शब्द नहीं कह पाते / ऋतु पल्लवी