हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे। हरि सिमरत जन गए निसतरि तरे।। टेक।। हरि के नाम कबीर उजागर। जनम जनम के काटे कागर।।१।। निमत नामदेउ दूधु पीआइया। तउ जग जनम संकट नहीं आइआ।।२।। जनम रविदास राम रंगि राता। इउ गुर परसादि नरक नहीं जाता।।३।।
Category: Ravidas
तुझहि चरन अरबिंद / रैदास
तुझहि चरन अरबिंद भँवर मनु। पान करत पाइओ, पाइओ रामईआ धनु।। टेक।। कहा भइओ जउ तनु भइओ छिनु छिनु। प्रेम जाइ तउ डरपै तेरो जनु।।१।। संपति बिपति पटल माइआ धनु। ता महि भगत होत न तेरो जनु।।२।। प्रेम की जेवरी बाधिओ तेरो जन। कहि रविदास छूटिबो कवन गुनै।।३।।
संत ची संगति संत कथा रसु / रैदास
संत ची संगति संत कथा रसु। संत प्रेम माझै दीजै देवा देव।। टेक।। संत तुझी तनु संगति प्रान। सतिगुर गिआन जानै संत देवा देव।।१।। संत आचरण संत चो मारगु। संत च ओल्हग ओल्हगणी।।२।। अउर इक मागउ भगति चिंतामणि। जणी लखावहु असंत पापी सणि।।३।। रविदास भणै जो जाणै सो जाणु। संत अनंतहि अंतरु नाही।।४।।
देहु कलाली एक पियाला / रैदास
देहु कलाली एक पियाला। ऐसा अवधू है मतिवाला।। टेक।। ए रे कलाली तैं क्या कीया, सिरकै सा तैं प्याला दीया।।१।। कहै कलाली प्याला देऊँ, पीवनहारे का सिर लेऊँ।।२।। चंद सूर दोऊ सनमुख होई, पीवै पियाला मरै न कोई।।३।। सहज सुनि मैं भाठी सरवै, पीवै रैदास गुर मुखि दरवै।।४।।
माधौ अविद्या हित कीन्ह / रैदास
माधौ अविद्या हित कीन्ह। ताथैं मैं तोर नांव न लीन्ह।। टेक।। मिग्र मीन भ्रिग पतंग कुंजर, एक दोस बिनास। पंच ब्याधि असाधि इहि तन, कौंन ताकी आस।।१।। जल थल जीव जंत जहाँ-जहाँ लौं करम पासा जाइ। मोह पासि अबध बाधौ, करियै कौंण उपाइ।।२।। त्रिजुग जोनि अचेत संम भूमि, पाप पुन्य न सोच। मानिषा अवतार दुरलभ,… Continue reading माधौ अविद्या हित कीन्ह / रैदास
माधौ संगति सरनि तुम्हारी / रैदास
माधौ संगति सरनि तुम्हारी। जगजीवन कृश्न मुरारी।। टेक।। तुम्ह मखतूल गुलाल चत्रभुज, मैं बपुरौ जस कीरा। पीवत डाल फूल रस अंमृत, सहजि भई मति हीरा।।१।। तुम्ह चंदन मैं अरंड बापुरौ, निकटि तुम्हारी बासा। नीच बिरख थैं ऊँच भये, तेरी बास सुबास निवासा।।२।। जाति भी वोंछी जनम भी वोछा, वोछा करम हमारा। हम सरनागति रांम राइ… Continue reading माधौ संगति सरनि तुम्हारी / रैदास
सु कछु बिचार्यौ ताथैं / रैदास
सु कछु बिचार्यौ ताथैं मेरौ मन थिर के रह्यौ। हरि रंग लागौ ताथैं बरन पलट भयौ।। टेक।। जिनि यहु पंथी पंथ चलावा, अगम गवन मैं गमि दिखलावा।।१।। अबरन बरन कथैं जिनि कोई, घटि घटि ब्यापि रह्यौ हरि सोई।।२।। जिहि पद सुर नर प्रेम पियासा, सो पद्म रमि रह्यौ जन रैदासा।।३।।
बंदे जानि साहिब गनीं / रैदास
बंदे जानि साहिब गनीं। संमझि बेद कतेब बोलै, ख्वाब मैं क्या मनीं।। टेक।। ज्वांनीं दुनी जमाल सूरति, देखिये थिर नांहि बे। दम छसै सहंस्र इकवीस हरि दिन, खजांनें थैं जांहि बे।।१।। मतीं मारे ग्रब गाफिल, बेमिहर बेपीर बे। दरी खानैं पड़ै चोभा, होत नहीं तकसीर बे।।२।। कुछ गाँठि खरची मिहर तोसा, खैर खूबी हाथि बे।… Continue reading बंदे जानि साहिब गनीं / रैदास
रांमहि पूजा कहाँ चढ़ँऊँ। / रैदास
रांमहि पूजा कहाँ चढ़ँाऊँ। फल अरु फूल अनूप न पांऊँ।। टेक।। थनहर दूध जु बछ जुठार्यौ, पहुप भवर जल मीन बिटार्यौ। मलियागिर बेधियौ भवंगा, विष अंम्रित दोऊँ एकै संगा।।१।। मन हीं पूजा मन हीं धूप, मन ही सेऊँ सहज सरूप।।२।। पूजा अरचा न जांनूं रांम तेरी, कहै रैदास कवन गति मेरी।।३।।
बरजि हो बरजि बीठल / रैदास
बरजि हो बरजि बीठल, माया जग खाया। महा प्रबल सब हीं बसि कीये, सुर नर मुनि भरमाया।। टेक।। बालक बिरधि तरुन अति सुंदरि, नांनां भेष बनावै। जोगी जती तपी संन्यासी, पंडित रहण न पावै।।१।। बाजीगर की बाजी कारनि, सबकौ कौतिग आवै। जो देखै सो भूलि रहै, वाका चेला मरम जु पावै।।२।। खंड ब्रह्मड लोक सब… Continue reading बरजि हो बरजि बीठल / रैदास