सु कछु बिचार्यौ ताथैं / रैदास

सु कछु बिचार्यौ ताथैं मेरौ मन थिर के रह्यौ।
हरि रंग लागौ ताथैं बरन पलट भयौ।। टेक।।
जिनि यहु पंथी पंथ चलावा, अगम गवन मैं गमि दिखलावा।।१।।
अबरन बरन कथैं जिनि कोई, घटि घटि ब्यापि रह्यौ हरि सोई।।२।।
जिहि पद सुर नर प्रेम पियासा, सो पद्म रमि रह्यौ जन रैदासा।।३।।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *