रथ कौ चतुर चलावन हारौ। खिण हाकै खिण ऊभौ राखै, नहीं आन कौ सारौ।। टेक।। जब रथ रहै सारहीं थाके, तब को रथहि चलावै। नाद बिनोद सबै ही थाकै, मन मंगल नहीं गावैं।।१।। पाँच तत कौ यहु रथ साज्यौ, अरधैं उरध निवासा। चरन कवल ल्यौ लाइ रह्यौ है, गुण गावै रैदासा।।२।।
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रे चित चेति चेति अचेत काहे / रैदास
रे चित चेति चेति अचेत काहे, बालमीकौं देख रे। जाति थैं कोई पदि न पहुच्या, राम भगति बिसेष रे।। टेक।। षट क्रम सहित जु विप्र होते, हरि भगति चित द्रिढ नांहि रे। हरि कथा सूँ हेत नांहीं, सुपच तुलै तांहि रे।।१।। स्वान सत्रु अजाति सब थैं, अंतरि लावै हेत रे। लोग वाकी कहा जानैं, तीनि… Continue reading रे चित चेति चेति अचेत काहे / रैदास
रे मन माछला संसार समंदे / रैदास
रे मन माछला संसार समंदे, तू चित्र बिचित्र बिचारि रे। जिहि गालै गिलियाँ ही मरियें, सो संग दूरि निवारि रे।। टेक।। जम छैड़ि गणि डोरि छै कंकन, प्र त्रिया गालौ जांणि रे। होइ रस लुबधि रमैं यू मूरिख, मन पछितावै न्यांणि रे।।१।। पाप गिल्यौ छै धरम निबौली, तू देखि देखि फल चाखि रे। पर त्रिया… Continue reading रे मन माछला संसार समंदे / रैदास
रांम राइ का कहिये यहु ऐसी / रैदास
रांम राइ का कहिये यहु ऐसी। जन की जांनत हौ जैसी तैसी।। टेक।। मीन पकरि काट्यौ अरु फाट्यौ, बांटि कीयौ बहु बांनीं। खंड खंड करि भोजन कीन्हौं, तऊ न बिसार्यौ पांनी।।१।। तै हम बाँधे मोह पासि मैं, हम तूं प्रेम जेवरिया बांध्यौ। अपने छूटन के जतन करत हौ, हम छूटे तूँ आराध्यौ।।२।। कहै रैदास भगति… Continue reading रांम राइ का कहिये यहु ऐसी / रैदास
इहै अंदेसा सोचि जिय मेरे / रैदास
इहै अंदेसा सोचि जिय मेरे। निस बासुरि गुन गाँऊँ रांम तेरे।। टेक।। तुम्ह च्यतंत मेरी च्यंता हो न जाई, तुम्ह च्यंतामनि होऊ कि नांहीं।।१।। भगति हेत का का नहीं कीन्हा, हमारी बेर भये बल हीनां।।२।। कहै रैदास दास अपराधी, जिहि तुम्ह ढरवौ सो मैं भगति न साधी।।३।।
बपुरौ सति रैदास कहै / रैदास
बपुरौ सति रैदास कहै। ग्यान बिचारि नांइ चित राखै, हरि कै सरनि रहै रे।। टेक।। पाती तोड़ै पूज रचावै, तारण तिरण कहै रे। मूरति मांहि बसै परमेसुर, तौ पांणी मांहि तिरै रे।।१।। त्रिबिधि संसार कवन बिधि तिरिबौ, जे दिढ नांव न गहै रे। नाव छाड़ि जे डूंगै बैठे, तौ दूणां दूख सहै रे।।२।। गुरु कौं… Continue reading बपुरौ सति रैदास कहै / रैदास
पार गया चाहै सब कोई / रैदास
पार गया चाहै सब कोई। रहि उर वार पार नहीं होई।। टेक।। पार कहैं उर वार सूँ पारा, बिन पद परचै भ्रमहि गवारा।।१।। पार परंम पद मंझि मुरारी, तामैं आप रमैं बनवारी।।२।। पूरन ब्रह्म बसै सब ठाइंर्, कहै रैदास मिले सुख सांइंर्।।३।।
ऐसी मेरी जाति भिख्यात चमारं / रैदास
ऐसी मेरी जाति भिख्यात चमारं। हिरदै राम गौब्यंद गुन सारं।। टेक।। सुरसुरी जल लीया क्रित बारूणी रे, जैसे संत जन करता नहीं पांन। सुरा अपवित्र नित गंग जल मांनियै, सुरसुरी मिलत नहीं होत आंन।।१।। ततकरा अपवित्र करि मांनियैं, जैसें कागदगर करत बिचारं। भगत भगवंत जब ऊपरैं लेखियैं, तब पूजियै करि नमसकारं।।२।। अनेक अधम जीव नांम… Continue reading ऐसी मेरी जाति भिख्यात चमारं / रैदास
भाई रे सहज बन्दी लोई / रैदास
भाई रे सहज बन्दी लोई, बिन सहज सिद्धि न होई। लौ लीन मन जो जानिये, तब कीट भंृगी होई।। टेक। आपा पर चीन्हे नहीं रे, और को उपदेस। कहाँ ते तुम आयो रे भाई, जाहुगे किस देस।।१।। कहिये तो कहिये काहि कहिये, कहाँ कौन पतियाइ। रैदास दास अजान है करि, रह्यो सहज समाइ।।२।।
माटी को पुतरा कैसे नचतु है / रैदास
माटी को पुतरा कैसे नचतु है। देखै देखै सुनै बोलै दउरिओ फिरतु है।। टेक।। जब कुछ पावै तब गरबु करतु है। माइआ गई तब रोवनु लगतु है।।१।। मन बच क्रम रस कसहि लुभाना। बिनसि गइआ जाइ कहूँ समाना।।२।। कहि रविदास बाजी जगु भाई। बाजीगर सउ मोहि प्रीति बनि आई।।३।।