भाई रे सहज बन्दी लोई / रैदास

भाई रे सहज बन्दी लोई, बिन सहज सिद्धि न होई।
लौ लीन मन जो जानिये, तब कीट भंृगी होई।। टेक।
आपा पर चीन्हे नहीं रे, और को उपदेस।
कहाँ ते तुम आयो रे भाई, जाहुगे किस देस।।१।।
कहिये तो कहिये काहि कहिये, कहाँ कौन पतियाइ।
रैदास दास अजान है करि, रह्यो सहज समाइ।।२।।

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