बागी / रामधारी सिंह “दिनकर”

(बोरस्टल जेल के शहीद यतीन्द्रनाथ दास की मृत्यु पर) निर्मम नाता तोड़ जगत का अमरपुरी की ओर चले, बन्धन-मुक्ति न हुई, जननि की गोद मधुरतम छोड़ चले। जलता नन्दन-वन पुकारता, मधुप! कहाँ मुँह मोड़ चले? बिलख रही यशुदा, माधव! क्यों मुरली मंजु मरोड़ चले? उबल रहे सब सखा, नाश की उद्धत एक हिलोर चले; पछताते… Continue reading बागी / रामधारी सिंह “दिनकर”

कस्मै देवाय / रामधारी सिंह “दिनकर”

कस्मै देवाय ? रच फूलों के गीत मनोहर. चित्रित कर लहरों के कम्पन, कविते ! तेरी विभव-पुरी में स्वर्गिक स्वप्न बना कवि-जीवन। छाया सत्य चित्र बन उतरी, मिला शून्य को रूप सनातन, कवि-मानस का स्वप्न भूमि पर बन आया सुरतरु-मधु-कानन। भावुक मन था, रोक न पाया, सज आये पलकों में सावन, नालन्दा-वैशाली के ढूहों पर,… Continue reading कस्मै देवाय / रामधारी सिंह “दिनकर”

पाटलिपुत्र की गंगा / रामधारी सिंह “दिनकर”

पाटलिपुत्र की गंगा से संध्या की इस मलिन सेज पर गंगे ! किस विषाद के संग, सिसक-सिसक कर सुला रही तू अपने मन की मृदुल उमंग? उमड़ रही आकुल अन्तर में कैसी यह वेदना अथाह ? किस पीड़ा के गहन भार से निश्चल-सा पड़ गया प्रवाह? मानस के इस मौन मुकुल में सजनि ! कौन-सी… Continue reading पाटलिपुत्र की गंगा / रामधारी सिंह “दिनकर”

मिथिला / रामधारी सिंह “दिनकर”

मैं पतझड़ की कोयल उदास, बिखरे वैभव की रानी हूँ मैं हरी-भरी हिम-शैल-तटी की विस्मृत स्वप्न-कहानी हूँ। अपनी माँ की मैं वाम भृकुटि, गरिमा की हूँ धूमिल छाया, मैं विकल सांध्य रागिनी करुण, मैं मुरझी सुषमा की माया। मैं क्षीणप्रभा, मैं हत-आभा, सम्प्रति, भिखारिणी मतवाली, खँडहर में खोज रही अपने उजड़े सुहाग की हूँ लाली।… Continue reading मिथिला / रामधारी सिंह “दिनकर”

बोधिसत्व / रामधारी सिंह “दिनकर”

बोधिसत्त्व सिमट विश्व-वेदना निखिल बज उठी करुण अन्तर में, देव ! हुंकरित हुआ कठिन युगधर्म तुम्हारे स्वर में । काँटों पर कलियों, गैरिक पर किया मुकुट का त्याग किस सुलग्न में जगा प्रभो ! यौवन का तीव्र विराग ? चले ममता का बंधन तोड़ विश्व की महामुक्ति की ओर । तप की आग, त्याग की… Continue reading बोधिसत्व / रामधारी सिंह “दिनकर”

कविता की पुकार / रामधारी सिंह “दिनकर”

कविता की पुकार आज न उडु के नील-कुंज में स्वप्न खोजने जाऊँगी, आज चमेली में न चंद्र-किरणों से चित्र बनाऊँगी। अधरों में मुस्कान, न लाली बन कपोल में छाउँगी, कवि ! किस्मत पर भी न तुम्हारी आँसू बहाऊँगी । नालन्दा-वैशाली में तुम रुला चुके सौ बार, धूसर भुवन-स्वर्ग _ग्रामों_में कर पाई न विहार। आज यह… Continue reading कविता की पुकार / रामधारी सिंह “दिनकर”

प्रेम का सौदा / रामधारी सिंह “दिनकर”

प्रेम का सौदा सत्य का जिसके हृदय में प्यार हो, एक पथ, बलि के लिए तैयार हो । फूँक दे सोचे बिना संसार को, तोड़ दे मँझधार जा पतवार को । कुछ नई पैदा रगों में जाँ करे, कुछ अजब पैदा नया तूफाँ करे। हाँ, नईं दुनिया गढ़े अपने लिए, रैन-दिन जागे मधुर सपने लिए… Continue reading प्रेम का सौदा / रामधारी सिंह “दिनकर”

हिमालय / रामधारी सिंह “दिनकर”

मेरे नगपति! मेरे विशाल! साकार, दिव्य, गौरव विराट्, पौरूष के पुन्जीभूत ज्वाल! मेरी जननी के हिम-किरीट! मेरे भारत के दिव्य भाल! मेरे नगपति! मेरे विशाल! युग-युग अजेय, निर्बन्ध, मुक्त, युग-युग गर्वोन्नत, नित महान, निस्सीम व्योम में तान रहा युग से किस महिमा का वितान? कैसी अखंड यह चिर-समाधि? यतिवर! कैसा यह अमर ध्यान? तू महाशून्य… Continue reading हिमालय / रामधारी सिंह “दिनकर”

ताण्डव / रामधारी सिंह “दिनकर”

तांडव नाचो, हे नाचो, नटवर ! चन्द्रचूड़ ! त्रिनयन ! गंगाधर ! आदि-प्रलय ! अवढर ! शंकर! नाचो, हे नाचो, नटवर ! आदि लास, अविगत, अनादि स्वन, अमर नृत्य – गति, ताल चिरन्तन, अंगभंगि, हुंकृति-झंकृति कर थिरक-थिरक हे विश्वम्भर ! नाचो, हे नाचो, नटवर ! सुन शृंगी-निर्घोष पुरातन, उठे सृष्टि-हृंत्‌ में नव-स्पन्दन, विस्फारित लख काल-नेत्र… Continue reading ताण्डव / रामधारी सिंह “दिनकर”

व्योम-कुंजों की परी अयि कल्पने! / रामधारी सिंह “दिनकर”

व्योम-कुंजों की परी अयि कल्पने व्योम-कुंजों की परी अयि कल्पने ! भूमि को निज स्वर्ग पर ललचा नहीं, उड़ न सकते हम धुमैले स्वप्न तक, शक्ति हो तो आ, बसा अलका यहीं। फूल से सज्जित तुम्हारे अंग हैं और हीरक-ओस का श्रृंगार है, धूल में तरुणी-तरुण हम रो रहे, वेदना का शीश पर गुरु भार… Continue reading व्योम-कुंजों की परी अयि कल्पने! / रामधारी सिंह “दिनकर”