गीत / रामधारी सिंह “दिनकर”

गीत उर की यमुना भर उमड़ चली, तू जल भरने को आ न सकी; मैं ने जो घाट रचा सरले! उस पर मंजीर बजा न सकी। दिशि-दिशि उँडेल विगलित कंचन, रँगती आई सन्ध्या का तन, कटि पर घट, कर में नील वसन; कर नमित नयन चुपचाप चली, ममता मुझ पर दिखला न सकी; चरणों का… Continue reading गीत / रामधारी सिंह “दिनकर”

कत्तिन का गीत / रामधारी सिंह “दिनकर”

कत्तिन का गीत कात रही सोने का गुन चाँदनी रूप-रस-बोरी; कात रही रुपहरे धाग दिनमणि की किरण किशोरी। घन का चरखा चला इन्द्र करते नव जीवन दान; तार-तार पर मैं काता करती इज्जत-सम्मान। हरी डार पर श्वेत फूल, यह तूल-वृक्ष मन भाया; श्याम हिन्द हिम-मुकुट-विमणिडत खेतों में मुस्काया। श्वेत कमल-सी रूई मेरी, मैं कमला महारानी;… Continue reading कत्तिन का गीत / रामधारी सिंह “दिनकर”

गीत-शिशु / रामधारी सिंह “दिनकर”

आशीर्वचन कहो मंगलमयि, गायन चले हृदय से, दूर्वासन दो अवनि। किरण मृदु, उतरो नील निलय से। बड़े यत्न से जिन्हें छिपाया ये वे मुकुल हमारे, जो अब तक बच रहे किसी विध ध्वंसक इष्ट प्रलय से। ये अबोध कल्पक के शिशु क्या रीति जगत की जानें, कुछ फूटे रोमाञ्च-पुलक से, कुछ अस्फुट विस्मय से। निज… Continue reading गीत-शिशु / रामधारी सिंह “दिनकर”

सूखे विटप की सारिके ! / रामधारी सिंह “दिनकर”

सूखे विटप की सारिके ! उजड़ी-कटीली डार से मैं देखता किस प्यार से पहना नवल पुष्पाभरण तृण, तरु, लता, वनराजि को हैं जो रहे विहसित वदन ऋतुराज मेरे द्वार से। मुझ में जलन है प्यास है, रस का नहीं आभास है, यह देख हँसती वल्लरी हँसता निखिल आकाश है। जग तो समझता है यही, पाषाण… Continue reading सूखे विटप की सारिके ! / रामधारी सिंह “दिनकर”

शेष गान / रामधारी सिंह “दिनकर”

संगिनि, जी भर गा न सका मैं। [१] गायन एक व्याज़ इस मन का, मूल ध्येय दर्शन जीवन का, रँगता रहा गुलाब, पटी पर अपना चित्र उठा न सका मैं। [२] इन गीतों में रश्मि अरुण है, बाल ऊर्म्मि, दिनमान तरुण है, बँधे अमित अपरूप रूप, गीतों में स्वयं समा न सका मैं। [३] बधे… Continue reading शेष गान / रामधारी सिंह “दिनकर”

रहस्य / रामधारी सिंह “दिनकर”

तुम समझोगे बात हमारी? [१] उडु-पुंजों के कुंज सघन में, भूल गया मैं पन्थ गगन में, जगे-जगे, आकुल पलकों में बीत गई कल रात हमारी। [२] अस्तोदधि की अरुण लहर में, पूरब-ओर कनक-प्रान्तर में, रँग-सी रही पंख उड़-उड़कर तृष्णा सायं-प्रात हमारी। [३] सुख-दुख में डुबकी-सी देकर, निकली वह देखो, कुछ लेकर, श्वेत, नील दो पद्म… Continue reading रहस्य / रामधारी सिंह “दिनकर”

प्रतीक्षा / रामधारी सिंह “दिनकर”

अयि संगिनी सुनसान की! [१] मन में मिलन की आस है, दृग में दरस की प्यास है, पर, ढूँढ़ता फिरता जिसे उसका पता मिलता नहीं, झूठे बनी धरती बड़ी, झूठे बृहत आकश है; मिलती नहीं जग में कहीं प्रतिमा हृदय के गान की। अयि संगिनी सुनसान की! [२] तुम जानती सब बात हो, दिन हो… Continue reading प्रतीक्षा / रामधारी सिंह “दिनकर”

संबल / रामधारी सिंह “दिनकर”

सोच रहा, कुछ गा न रहा मैं। [१] निज सागर को थाह रहा हूँ, खोज गीत में राह रहा हूँ, पर, यह तो सब कुछ अपने हित, औरों को समझा न रहा मैं। [२] वातायन शत खोल हृदय के, कुछ निर्वाक खड़ा विस्मय से, उठा द्वार-पट चकित झाँक अपनेपन को पहचान रहा मैं। [३] ग्रन्थि… Continue reading संबल / रामधारी सिंह “दिनकर”

अगेय की ओर / रामधारी सिंह “दिनकर”

अगेय की ओर गायक, गान, गेय से आगे मैं अगेय स्वन का श्रोता मन। [१] सुनना श्रवण चाहते अब तक भेद हृदय जो जान चुका है; बुद्धि खोजती उन्हें जिन्हें जीवन निज को कर दान चुका है। खो जाने को प्राण विकल है चढ़ उन पद-पद्मों के ऊपर; बाहु-पाश से दूर जिन्हें विश्वास हृदय का… Continue reading अगेय की ओर / रामधारी सिंह “दिनकर”

संध्या / रामधारी सिंह “दिनकर”

संध्या जीर्णवय अम्बर-कपालिक शीर्ण, वेपथुमान पी रहा आहत दिवस का रक्त मद्य-समान। शिथिल, मद-विह्वल, प्रकंपित-वपु, हृदय हतज्ञान, गिर गया मधुपात्र कर से, गिर गया दिनमान। खो गई चूकर जलद के जाल में मद-धार; नीलिमा में हो गया लय व्योम का शृंगार। शान्त विस्मित भूमि का गति-रोर; एक गहरी शान्ति चारों ओर। कौन तम की आँख-सा… Continue reading संध्या / रामधारी सिंह “दिनकर”