गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे / क़तील

गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे गुज़रूँ जो उस गली से तो ठंडी हवा लगे मेहमान बन के आये किसी रोज़ अगर वो शख़्स उस रोज़ बिन सजाये मेरा घर सजा लगे मैं इस लिये मनाता नहीं वस्ल की ख़ुशी मेरे रक़ीब की न मुझे बददुआ लगे वो क़हत दोस्ती का पड़ा है कि… Continue reading गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे / क़तील

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं / क़तील

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं बच निकलते हैं अगर आतिह-ए-सय्याद से हम शोला-ए-आतिश-ए-गुलफ़ाम से जल जाते हैं ख़ुदनुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा जिन को जलना हो वो आराअम से जल जाते हैं शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिये हम उसी आग में गुमनाम से… Continue reading गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं / क़तील

दुनिया ने हम पे जब कोई इल्ज़ाम रख दिया / क़तील

दुनिया ने हम पे जब कोई इल्ज़ाम रख दिया हमने मुक़ाबिल उसके तेरा नाम रख दिया इक ख़ास हद पे आ गई जब तेरी बेरुख़ी नाम उसका हमने [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”समय का चक्कर”]गर्दिशे-अय्याम[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  रख दिया मैं लड़खड़ा रहा हूँ तुझे देख-देखकर तूने तो मेरे सामने इक जाम रख दिया कितना [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”हँसी-हँसी में अत्याचार करने वाला”]सितम-ज़रीफ़[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]… Continue reading दुनिया ने हम पे जब कोई इल्ज़ाम रख दिया / क़तील

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह / क़तील

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह मैनें तुझसे चाँद सितारे कब माँगे रौशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह या धरती के ज़ख़्मों पर मरहम रख दे या मेरा… Continue reading दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह / क़तील

चराग़ दिल के जलाओ कि ईद का दिन है / क़तील

चराग़ दिल के जलाओ कि ईद का दिन है तराने झूम के गाओ कि ईद का दिन है ग़मों को दिल से भुलाओ कि ईद का दिन है ख़ुशी से बज़्म सजाओ कि ईद का दिन है हुज़ूर उसकी करो अब सलामती की दुआ सर-ए-नमाज़ झुकाओ कि ईद का दिन है सभी मुराद हो पूरी… Continue reading चराग़ दिल के जलाओ कि ईद का दिन है / क़तील

बेचैन बहारों में क्या-क्या है / क़तील

बेचैन बहारों में क्या-क्या है जान की ख़ुश्बू आती है जो फूल महकता है उससे तूफ़ान की ख़ुश्बू आती है कल रात दिखा के ख़्वाब-ए-तरब जो सेज को सूना छोड़ गया हर सिलवट से फिर आज उसी मेहमान की ख़ुश्बू आती है तल्कीन-ए-इबादत की है मुझे यूँ तेरी मुक़द्दस आँखों ने मंदिर के दरीचों से… Continue reading बेचैन बहारों में क्या-क्या है / क़तील

अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ / क़तील

अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ थक गया मैं करते-करते याद तुझको अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे… Continue reading अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ / क़तील

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझ को / क़तील

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको मैं हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी ये तेरी सादादिली मार न डाले मुझको मैं समंदर भी हूँ, मोती भी हूँ, ग़ोताज़न भी कोई भी नाम मेरा लेके बुला ले मुझको तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ… Continue reading अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझ को / क़तील

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की / क़तील

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की वस्ल की रात न जाने क्यूँ इसरार था उनको जाने पर वक़्त से पहले डूब गए तारों ने… Continue reading अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की / क़तील

जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग / क़तील

जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग एक चेहरे पर कई चेहरे सजा लेते हैं लोग मिल भी लेते हैं गले से अपने मतलब के लिए आ पड़े मुश्किल तो नज़रें भी चुरा लेते हैं लोग है बजा उनकी शिकायत लेकिन इसका क्या इलाज बिजलियाँ खुद अपने गुलशन पर गिरा लेते हैं… Continue reading जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग / क़तील