आ ऋतुराज! / ओम पुरोहित ‘कागद’

आ ऋतुराज ! पेड़ों की नंगी टहनियां देख, तू क्यों लाया हरित पल्लव बासंती परिधान ? अपने कुल, अपने वर्ग का मोह त्याग, आ,ऋतुराज! विदाउट ड्रेस मुर्गा बने पीरिये के रामले को सजा मुक्त कर दे। पहिना दे भले ही परित्यक्त, पतझड़िया, बासी परिधान। क्यों लगता है लताओं को पेड़ों के सान्निध्य में ? उनको… Continue reading आ ऋतुराज! / ओम पुरोहित ‘कागद’

मैं देशद्रोही नहीं हूं / ओम पुरोहित ‘कागद’

मैं देशद्रोही नहीं हूँ मैं मानता हूँ मैं स्वतन्त्र भारत की देह पर फोड़ा हूँ, लेकिन मैं अजेय नही हूँ । बस, अपने भीतर दर्द रखता हूँ, इसीलिए अछूत हूँ, दोषी हूँ । मैं अक्षम नहीं हूँ, भूखा हूँ । भले ही आपने मुझ पर- ‘गरीबी की रेखा’ पटक कर, छुपाने का असफल प्रयास किया… Continue reading मैं देशद्रोही नहीं हूं / ओम पुरोहित ‘कागद’