वह चिड़िया जो / केदारनाथ अग्रवाल

वह चिड़िया जो- चोंच मार कर दूध-भरे जुंडी के दाने रुचि से, रस से खा लेती है वह छोटी संतोषी चिड़िया नीले पंखों वाली मैं हूँ मुझे अन्‍न से बहुत प्‍यार है। वह चिड़िया जो- कंठ खोल कर बूढ़े वन-बाबा के खातिर रस उँडेल कर गा लेती है वह छोटी मुँह बोली चिड़िया नीले पंखों… Continue reading वह चिड़िया जो / केदारनाथ अग्रवाल

वह पठार जो जड़ बीहड़ था / केदारनाथ अग्रवाल

वह पठार जो जड़ बीहड़ था कटते-कटते ध्वस्त हो गया, धूल हो गया, सिंचते-सिंचते, दूब हो गया, और दूब पर वन के मन के- रंग -रूप के, फूल खिल उठे, वन फूलों से गंध-गंध संसार हो गया।

तुम भी कुछ हो / केदारनाथ अग्रवाल

तुम भी कुछ हो तुम भी कुछ हो लेकिन जो हो, वह कलियों में रूप-गन्ध की लगी गांठ है जिसे उजाला धीरे धीरे खोल रहा है। यह जो नग दिये के नीचे चुप बैठा है, इसने मुझको काट लिया है, इस काटे का मंत्र तुम्हारे चुंबन में है, तुम चुंबन से मुझे जिला दो।

लिपट गयी जो धूल / केदारनाथ अग्रवाल

लिपट गयी जो धूल लिपट गयी जो धूल पांव से वह गोरी है इसी गांव की जिसे उठाया नहीं किसी ने इस कुठांव से। ऐसे जैसे किरण ओस के मोती छू ले तुम मुझको चुंबन से छू लो मैं रसमय हो जाऊँ!

पूरा हिन्दुस्तान मिलेगा / केदारनाथ अग्रवाल

इसी जन्म में, इस जीवन में, हमको तुमको मान मिलेगा। गीतों की खेती करने को, पूरा हिन्दुस्तान मिलेगा। क्लेश जहाँ है, फूल खिलेगा, हमको तुमको ज्ञान मिलेगा। फूलों की खेती करने को, पूरा हिन्दुस्तान मिलेगा। दीप बुझे हैं जिन आँखों के, उन आँखों को ज्ञान मिलेगा। विद्या की खेती करने को, पूरा हिन्दुस्तान मिलेगा। मैं… Continue reading पूरा हिन्दुस्तान मिलेगा / केदारनाथ अग्रवाल

पुकार / केदारनाथ अग्रवाल

ऐ इन्सानों! आँधी के झूले पर झूलो आग बबूला बन कर फूलो कुरबानी करने को झूमो लाल सवेरे का मूँह चूमो ऐ इन्सानों ओस न चाटो अपने हाथों पर्वत काटो पथ की नदियाँ खींच निकालो जीवन पीकर प्यास बुझालो रोटी तुमको राम न देगा वेद तुम्हारा काम न देगा जो रोटी का युद्ध करेगा वह… Continue reading पुकार / केदारनाथ अग्रवाल