और का और मेरा दिन / केदारनाथ अग्रवाल

दिन है किसी और का सोना का हिरन, मेरा है भैंस की खाल का मरा दिन। यही कहता है वृद्ध रामदहिन यही कहती है उसकी धरैतिन, जब से चल बसा उनका लाड़ला।

मात देना नहीं जानतीं / केदारनाथ अग्रवाल

घर की फुटन में पड़ी औरतें ज़िन्दगी काटती हैं मर्द की मौह्ब्बत में मिला काल का काला नमक चाटती हैं जीती ज़रूर हैं जीना नहीं जानतीं; मात खातीं- मात देना नहीं जानतीं

बच्चे के जन्म पर / केदारनाथ अग्रवाल

हाथी-सा बलवान, जहाजी हाथों वाला और हुआ सूरज-सा इंसान, तरेरी आँखों वाला और हुआ एक हथौड़े वाला घर में और हुआ माता रही विचार अंधेरा हरने वाला और हुआ दादा रहे निहार सवेरा करने वाला और हुआ एक हथौड़े वाला घर में और हुआ जनता रही पुकार सलामत लाने वाला और हुआ सुन ले री… Continue reading बच्चे के जन्म पर / केदारनाथ अग्रवाल

मजदूर का जन्म / केदारनाथ अग्रवाल

एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ ! हाथी सा बलवान, जहाजी हाथों वाला और हुआ ! सूरज-सा इन्सान, तरेरी आँखोंवाला और हुआ !! एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ! माता रही विचार, अँधेरा हरनेवाला और हुआ ! दादा रहे निहार, सबेरा करनेवाला और हुआ !! एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ ! जनता रही पुकार,… Continue reading मजदूर का जन्म / केदारनाथ अग्रवाल

जिन्दगी / केदारनाथ अग्रवाल

देश की छाती दरकते देखता हूँ! थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को, पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ! सत्य के जारज सुतों को, लंदनी गौरांग प्रभु की, लीक चलते देखता हूँ! डालरी साम्राज्यवादी मौत-घर में, आँख मूँदे डाँस करते देखता हूँ!! देश की छाती दरकते देखता हूँ! मैं अहिंसा के निहत्थे हाथियों को,… Continue reading जिन्दगी / केदारनाथ अग्रवाल

हमारी जिन्दगी / केदारनाथ अग्रवाल

हमारी जिन्दगी के दिन, बड़े संघर्ष के दिन हैं। हमेशा काम करते हैं, मगर कम दाम मिलते हैं। प्रतिक्षण हम बुरे शासन– बुरे शोषण से पिसते हैं!! अपढ़, अज्ञान, अधिकारों से वंचित हम कलपते हैं। सड़क पर खूब चलते पैर के जूते-से घिसते हैं।। हमारी जिन्दगी के दिन, हमारी ग्लानि के दिन हैं!! हमारी जिन्दगी… Continue reading हमारी जिन्दगी / केदारनाथ अग्रवाल

पहला पानी / केदारनाथ अग्रवाल

पहला पानी गिरा गगन से उमँड़ा आतुर प्यार, हवा हुई, ठंढे दिमाग के जैसे खुले विचार । भीगी भूमि-भवानी, भीगी समय-सिंह की देह, भीगा अनभीगे अंगों की अमराई का नेह पात-पात की पाती भीगी-पेड़-पेड़ की डाल, भीगी-भीगी बल खाती है गैल-छैल की चाल । प्राण-प्राणमय हुआ परेवा,भीतर बैठा, जीव, भोग रहा है द्रवीभूत प्राकृत आनंद… Continue reading पहला पानी / केदारनाथ अग्रवाल

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है / केदारनाथ अग्रवाल

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है जो रवि के रथ का घोड़ा है वह जन मारे नहीं मरेगा नहीं मरेगा जो जीवन की आग जला कर आग बना है फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है जिसने शोषण… Continue reading जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है / केदारनाथ अग्रवाल