वह पठार जो जड़ बीहड़ था / केदारनाथ अग्रवाल

वह पठार जो जड़ बीहड़ था

कटते-कटते ध्वस्त हो गया,
धूल हो गया,
सिंचते-सिंचते,
दूब हो गया,
और दूब पर
वन के मन के-
रंग -रूप के, फूल खिल उठे,
वन फूलों से गंध-गंध
संसार हो गया।

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