यूँ दिल में अरमान बहुत हैं / जगदीश चंद्र ठाकुर

यूँ दिल में अरमान बहुत हैं अक्षत कम भगवान बहुत हैं | हासिल हो तो भी क्या होगा फिर भी वे हैरान बहुत हैं | यहाँ मुखौटे का फैशन है गुल हैं कम गुलदान बहुत हैं | शहर नया दस्तूर पुराना दर हैं कम दरबान बहुत हैं | सच बोलोगे, दार मिलेगी झूठ कहो, ईनाम… Continue reading यूँ दिल में अरमान बहुत हैं / जगदीश चंद्र ठाकुर

हर जगह बस दीनता ही दीनता है / जगदीश चंद्र ठाकुर

हर जगह बस दीनता ही दीनता है एक भिखारी दूसरे से छीनता है | और क्या वे दे सकेंगे दूसरे को जिनके भीतर हीनता ही हीनता है | लोग कंबल ओढ कर घी पी रहे हैं और हम कहते इसे शालीनता है | ये जो बगुले हैं दिखाई दे रहे मछलियों के ही लिए तल्लीनता… Continue reading हर जगह बस दीनता ही दीनता है / जगदीश चंद्र ठाकुर