हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा / इक़बाल

ख़िर्द के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं रंगों में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं उरूस-ए-लाला मुनासिब नहीं है मुझसे हिजाब कि मैं नसीम-ए-सहर… Continue reading हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा / इक़बाल

आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है / इक़बाल

आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है वहाँ कुंतर सब बिल्लोरी है, यहाँ एक पुराना मटका है इस दौर में सब मिट जायेंगे, हाँ बाक़ी वो रह जायेगा जो क़ायम अपनी राह पे है, और पक्का अपनी हट का हे अए शैख़-ओ-ब्रह्मन सुनते हो क्या अह्ल-ए-बसीरत कहते हैं गर्दों ने कितनी… Continue reading आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है / इक़बाल

قلم اٹھتا ہے تو سوچیں بدل جاتی ہیں

قلم اٹھتا ہے تو سوچیں بدل جاتی ہیں اک شخص کی محنت سے ملتیں تشکیل پاتی ہیں کیا خوب تھا وہ شخص جس نے دنیا کو بتایا کس طرح غوروفکر سے بےنام قوم نام پا جاتی ہیں گر لکھنے بیٹھوں تو بہت کچھ لکھوں اس ذات پر جس پڑھنے کے لیے ہر صاحب فہم کو… Continue reading قلم اٹھتا ہے تو سوچیں بدل جاتی ہیں

तराना-ए-हिन्दी (सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा ) / इक़बाल

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”परदेस”]ग़ुर्बत[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा परबत वह सबसे ऊँचा, पड़ोसी[ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”पड़ोसी”]हम्साया[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  आसमाँ का वह संतरी हमारा, वह [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”रक्षक”]पासबाँ[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  हमारा गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ गुल्शन… Continue reading तराना-ए-हिन्दी (सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा ) / इक़बाल

लोग हर मोड़ पे / राहत इन्दौरी

लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं नींद से मेरा त’अल्लुक़ ही नहीं बरसों से ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं… Continue reading लोग हर मोड़ पे / राहत इन्दौरी

कितनी पी कैसे कटी रात / राहत इन्दौरी

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं आँसुओं और शराबों में गुजारी है हयात मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं जाने क्या टूटा है पैमाना कि… Continue reading कितनी पी कैसे कटी रात / राहत इन्दौरी

धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो ना/ राहत इन्दौरी

धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो न बाबा मेरे नाम का बादल भेजो न मोल्सरी की शाख़ों पर भी दिये जलें शाख़ों का केसरया आँचल भेजो न नन्ही मुन्नी सब चेहकारें कहाँ गईं मोरों के पैरों की पायल भेजो न बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी है गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो न सारे मौसम… Continue reading धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो ना/ राहत इन्दौरी

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो / राहत इन्दौरी

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो खर्च करने से पहले कमाया करो ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे बारिशों में पतंगें उड़ाया करो दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर नीम की पत्तियों को चबाया करो शाम के बाद जब तुम सहर देख लो कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो अपने सीने में दो… Continue reading उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो / राहत इन्दौरी

जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं / राहत इन्दौरी

जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं। कुलाह तौक से भारी पहन के आते है। अमीर शहर तेरे जैसी क़ीमती पोशाक मेरी गली में भिखारी पहन के आते हैं। यही अकीक़ थे शाहों के ताज की जीनत जो उँगलियों में मदारी पहन के आते हैं। इबादतों की हिफाज़त भी उनके जिम्मे हैं। जो मस्जिदों… Continue reading जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं / राहत इन्दौरी

हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी / राहत इन्दौरी

हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी दिए जलाओ के मैदान साफ़ है, जानी हमे चमकती हुई सर्दियों का खौफ नहीं हमारे पास पुराना लिहाफ है, जानी वफ़ा का नाम यहाँ हो चूका बहुत बदनाम मैं बेवफा हूँ मुझे ऐतराफ है, जानी है अपने रिश्तों की बुनियाद जिन शरायत पर वहीँ से तेरा… Continue reading हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी / राहत इन्दौरी