लोग हर मोड़ पे / राहत इन्दौरी

लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं नींद से मेरा त’अल्लुक़ ही नहीं बरसों से ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं… Continue reading लोग हर मोड़ पे / राहत इन्दौरी

कितनी पी कैसे कटी रात / राहत इन्दौरी

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं आँसुओं और शराबों में गुजारी है हयात मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं जाने क्या टूटा है पैमाना कि… Continue reading कितनी पी कैसे कटी रात / राहत इन्दौरी

धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो ना/ राहत इन्दौरी

धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो न बाबा मेरे नाम का बादल भेजो न मोल्सरी की शाख़ों पर भी दिये जलें शाख़ों का केसरया आँचल भेजो न नन्ही मुन्नी सब चेहकारें कहाँ गईं मोरों के पैरों की पायल भेजो न बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी है गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो न सारे मौसम… Continue reading धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो ना/ राहत इन्दौरी

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो / राहत इन्दौरी

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो खर्च करने से पहले कमाया करो ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे बारिशों में पतंगें उड़ाया करो दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर नीम की पत्तियों को चबाया करो शाम के बाद जब तुम सहर देख लो कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो अपने सीने में दो… Continue reading उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो / राहत इन्दौरी

जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं / राहत इन्दौरी

जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं। कुलाह तौक से भारी पहन के आते है। अमीर शहर तेरे जैसी क़ीमती पोशाक मेरी गली में भिखारी पहन के आते हैं। यही अकीक़ थे शाहों के ताज की जीनत जो उँगलियों में मदारी पहन के आते हैं। इबादतों की हिफाज़त भी उनके जिम्मे हैं। जो मस्जिदों… Continue reading जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं / राहत इन्दौरी

हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी / राहत इन्दौरी

हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी दिए जलाओ के मैदान साफ़ है, जानी हमे चमकती हुई सर्दियों का खौफ नहीं हमारे पास पुराना लिहाफ है, जानी वफ़ा का नाम यहाँ हो चूका बहुत बदनाम मैं बेवफा हूँ मुझे ऐतराफ है, जानी है अपने रिश्तों की बुनियाद जिन शरायत पर वहीँ से तेरा… Continue reading हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी / राहत इन्दौरी

सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे / राहत इन्दौरी

सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे जगा दिया तेरी पाज़ेब ने खनक के मुझे कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे ताल्लुकात में कैसे दरार पड़ती है दिखा दिया किसी कमज़र्फ ने छलक के मुझे हमें खुद अपने सितारे तलाशने होंगे ये… Continue reading सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे / राहत इन्दौरी

सर पर बोझ अँधियारों का है मौला खैर / राहत इन्दौरी

सर पर बोझ अँधियारों का है मौला खैर और सफ़र कोहसारों का है मौला खैर दुशमन से तो टक्कर ली है सौ-सौ बार सामना अबके यारों का है मौला खैर इस दुनिया में तेरे बाद मेरे सर पर साया रिश्तेदारों का है मौला खैर दुनिया से बाहर भी निकलकर देख चुके सब कुछ दुनियादारों का… Continue reading सर पर बोझ अँधियारों का है मौला खैर / राहत इन्दौरी

वफ़ा को आज़माना चाहिए था / राहत इन्दौरी

वफ़ा को आज़माना चाहिए था, हमारा दिल दुखाना चाहिए था आना न आना मेरी मर्ज़ी है, तुमको तो बुलाना चाहिए था हमारी ख्वाहिश एक घर की थी, उसे सारा ज़माना चाहिए था मेरी आँखें कहाँ नाम हुई थीं, समुन्दर को बहाना चाहिए था जहाँ पर पंहुचना मैं चाहता हूँ, वहां पे पंहुच जाना चाहिए था… Continue reading वफ़ा को आज़माना चाहिए था / राहत इन्दौरी

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं / राहत इन्दौरी

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं मगर… Continue reading रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं / राहत इन्दौरी