परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए / इक़बाल

परीशाँ होके मेरी खाक आखिर दिल न बन जाये जो मुश्किल अब हे या रब फिर वही मुश्किल न बन जाये न करदें मुझको मज़बूरे नवा फिरदौस में हूरें मेरा सोज़े दरूं फिर गर्मीए महेफिल न बन जाये कभी छोडी हूई मज़िलभी याद आती है राही को खटक सी है जो सीने में गमें मंज़िल… Continue reading परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए / इक़बाल

सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं / इक़बाल

सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं हाय क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं है मेरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलील जिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैं बज़्म-ए-हस्ती अपनी आराइश पे तू नाज़ाँ न हो तू तो इक तस्वीर है महफ़िल की… Continue reading सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं / इक़बाल

अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा / इक़बाल

अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा मुझे फ़िक्र-ए-जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा अगर हँगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा मोहम्मद भी तेरा जिब्रील… Continue reading अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा / इक़बाल

जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी / इक़बाल

उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो ख़ाक-ए-उमरा के दर-ओ-दीवार हिला दो गरमाओ ग़ुलामों का लहू सोज़-ए-यक़ीं से कुन्जिश्क-ए-फिरोमाया को शाहीं से लड़ा दो सुल्तानी-ए-जमहूर का आता है ज़माना जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आये मिटा दो जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी उस ख़ेत के हर ख़ोशा-ए-गुन्दम को जला दो क्यों… Continue reading जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी / इक़बाल

हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा / इक़बाल

ख़िर्द के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं रंगों में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं उरूस-ए-लाला मुनासिब नहीं है मुझसे हिजाब कि मैं नसीम-ए-सहर… Continue reading हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा / इक़बाल

आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है / इक़बाल

आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है वहाँ कुंतर सब बिल्लोरी है, यहाँ एक पुराना मटका है इस दौर में सब मिट जायेंगे, हाँ बाक़ी वो रह जायेगा जो क़ायम अपनी राह पे है, और पक्का अपनी हट का हे अए शैख़-ओ-ब्रह्मन सुनते हो क्या अह्ल-ए-बसीरत कहते हैं गर्दों ने कितनी… Continue reading आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है / इक़बाल

قلم اٹھتا ہے تو سوچیں بدل جاتی ہیں

قلم اٹھتا ہے تو سوچیں بدل جاتی ہیں اک شخص کی محنت سے ملتیں تشکیل پاتی ہیں کیا خوب تھا وہ شخص جس نے دنیا کو بتایا کس طرح غوروفکر سے بےنام قوم نام پا جاتی ہیں گر لکھنے بیٹھوں تو بہت کچھ لکھوں اس ذات پر جس پڑھنے کے لیے ہر صاحب فہم کو… Continue reading قلم اٹھتا ہے تو سوچیں بدل جاتی ہیں

तराना-ए-हिन्दी (सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा ) / इक़बाल

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”परदेस”]ग़ुर्बत[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा परबत वह सबसे ऊँचा, पड़ोसी[ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”पड़ोसी”]हम्साया[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  आसमाँ का वह संतरी हमारा, वह [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”रक्षक”]पासबाँ[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  हमारा गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ गुल्शन… Continue reading तराना-ए-हिन्दी (सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा ) / इक़बाल