ये घर है दर्द का घर, परदे हटा के देखो, ग़म हैं हंसी के अंदर, परदे हटा के देखो। लहरों के झाग ही तो, परदे बने हुए हैं, गहरा बहुत समंदर, परदे हटा के देखो। चिड़ियों का चहचहाना, पत्तों का सरसराना, सुनने की चीज़ हैं पर, परदे हटा के देखो। नभ में उषा की रंगत,… Continue reading परदे हटा के देखो / अशोक चक्रधर
Category: Hindi-Urdu Poets
हंसना-रोना / अशोक चक्रधर
जो रोया सो आंसुओं के दलदल में धंस गया, और कहते हैं, जो हंस गया वो फंस गया अगर फंस गया, तो मुहावरा आगे बढ़ता है कि जो हंस गया, उसका घर बस गया। मुहावरा फिर आगे बढ़ता है जिसका घर बस गया, वो फंस गया ! ….और जो फंस गया, वो फिर से आंसुओं… Continue reading हंसना-रोना / अशोक चक्रधर
ख़लीफ़ा की खोपड़ी / अशोक चक्रधर
दर्शकों का नया जत्था आया गाइड ने उत्साह से बताया— ये नायाब चीज़ों का अजायबघर है, कहीं परिन्दे की चोंच है कहीं पर है। ये देखिए ये संगमरमर की शिला एक बहुत पुरानी क़बर की है, और इस पर जो बड़ी-सी खोपड़ी रखी है न, ख़लीफा बब्बर की है। तभी एक दर्शक ने पूछा— और… Continue reading ख़लीफ़ा की खोपड़ी / अशोक चक्रधर
पहला क़दम / अशोक चक्रधर
अब जब विश्वभर में सबके सब, सभ्य हैं, प्रबुद्ध हैं तो क्यों करते युद्ध हैं ? कैसी विडंबना कि आधुनिक कहाते हैं, फिर भी देश लड़ते हैं लहू बहाते हैं। एक सैनिक दूसरे को बिना बात मारता है, इससे तो अच्छी समझौता वार्ता है। एक दूसरे के समक्ष बैठ जाएं दोनों पक्ष बाचतीत से हल… Continue reading पहला क़दम / अशोक चक्रधर
नेता जी लगे मुस्कुराने / अशोक चक्रधर
एक महा विद्यालय में नए विभाग के लिए नया भवन बनवाया गया, उसके उद्घाटनार्थ विद्यालय के एक पुराने छात्र लेकिन नए नेता को बुलवाया गया। अध्यापकों ने कार के दरवाज़े खोले नेती जी उतरते ही बोले— यहां तर गईं कितनी ही पीढ़ियां, अहा ! वही पुरानी सीढ़ियां ! वही मैदान वही पुराने वृक्ष, वही कार्यालय… Continue reading नेता जी लगे मुस्कुराने / अशोक चक्रधर
कितनी रोटी / अशोक चक्रधर
गांव में अकाल था, बुरा हाल था। एक बुढ़ऊ ने समय बिताने को, यों ही पूछा मन बहलाने को— ख़ाली पेट पर कितनी रोटी खा सकते हो गंगानाथ ? गंगानाथ बोला— सात ! बुढ़ऊ बोला— गलत ! बिलकुल ग़लत कहा, पहली रोटी खाने के बाद पेट खाली कहां रहा। गंगानाथ, यही तो मलाल है, इस… Continue reading कितनी रोटी / अशोक चक्रधर
नन्ही सचाई / अशोक चक्रधर
एक डॉक्टर मित्र हमारे स्वर्ग सिधारे। असमय मर गए, सांत्वना देने हम उनके घर गए। उनकी नन्ही-सी बिटिया भोली-नादान थी, जीवन-मृत्यु से अनजान थी। हमेशा की तरह द्वार पर आई, देखकर मुस्कुराई। उसकी नन्ही-सचाई दिल को लगी बेधने, बोली— अंकल ! भगवान जी बीमार हैं न पापा गए हैं देखने।
दया / अशोक चक्रधर
भूख में होती है कितनी लाचारी, ये दिखाने के लिए एक भिखारी, लॉन की घास खाने लगा, घर की मालकिन में दया जगाने लगा। दया सचमुच जागी मालकिन आई भागी-भागी- क्या करते हो भैया ? भिखारी बोला भूख लगी है मैया। अपने आपको मरने से बचा रहा हूं, इसलिए घास ही चबा रहा हूं। मालकिन… Continue reading दया / अशोक चक्रधर
चुटपुटकुले (कविता) / अशोक चक्रधर
चुटपुटकुले ये चुटपुटकुले हैं, हंसी के बुलबुले हैं। जीवन के सब रहस्य इनसे ही तो खुले हैं, बड़े चुलबुले हैं, ये चुटपुटकुले हैं। माना कि कम उम्र होते हंसी के बुलबुले हैं, पर जीवन के सब रहस्य इनसे ही तो खुले हैं, ये चुटपुटकुले हैं। ठहाकों के स्त्रोत कुछ यहां कुछ वहां के, कुछ खुद… Continue reading चुटपुटकुले (कविता) / अशोक चक्रधर
फिर कभी / अशोक चक्रधर
एक गुमसुम मैना है अकेले में गाती है राग बागेश्री । तोता उससे कहे कुछ सुनाओ तो ज़रा तो चोंच चढ़ाकर कहती है फिर कभी गाऊँगी जी ।