नन्ही सचाई / अशोक चक्रधर

एक डॉक्टर मित्र हमारे
स्वर्ग सिधारे।
असमय मर गए,
सांत्वना देने
हम उनके घर गए।
उनकी नन्ही-सी बिटिया
भोली-नादान थी,
जीवन-मृत्यु से
अनजान थी।
हमेशा की तरह
द्वार पर आई,
देखकर मुस्कुराई।
उसकी नन्ही-सचाई
दिल को लगी बेधने,
बोली—
अंकल !
भगवान जी बीमार हैं न
पापा गए हैं देखने।

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