देते हुए एन.डी.टी.वी. का हवाला, एक दिन घर पर आई रेवती नाम की बाला। प्यारी सी उत्साही कन्या शहंशाही काठी में स्वनामधन्या। यानि करुणा-मानवता की निर्मल नदी, विचारों में अग्रणी इक्कीसवीं सदी। नए प्रस्ताव की झुलाते हुए झोली, रेवती बोली- हमारे ‘गुड मार्निंग इंडिया’ में एक सैक्शन है ‘फ़नीज़’, आप उसमें जोक्स जैसी कुछ कविताएं… Continue reading पुस्तक की भूमिका / अशोक चक्रधर
Category: Hindi-Urdu Poets
ओज़ोन लेयर / अशोक चक्रधर
पति-पत्नी में बिलकुल नहीं बनती है, बिना बात ठनती है। खिड़की से निकलती हैं आरोपों की बदबूदार हवाएं, नन्हे पौधों जैसे बच्चे खाद-पानी का इंतज़ाम किससे करवाएं ? होते रहते हैं शिकवे-शिकायतों के कंटीले हमले, सूख गए हैं मधुर संबंधों के गमले। नाली से निकलता है घरेलू पचड़ों के कचरों का मैला पानी, नीरस हो… Continue reading ओज़ोन लेयर / अशोक चक्रधर
रिक्शेवाला / अशोक चक्रधर
आवाज़ देकर रिक्शेवाले को बुलाया वो कुछ लंगड़ाता हुआ आया। मैंने पूछा— यार, पहले ये तो बताओगे, पैर में चोट है कैसे चलाओगे ? रिक्शेवाला कहता है— बाबू जी, रिक्शा पैर से नहीं पेट से चलता है।
डैमोक्रैसी / अशोक चक्रधर
पार्क के कोने में घास के बिछौने पर लेटे-लेटे हम अपनी प्रेयसी से पूछ बैठे— क्यों डियर ! डैमोक्रैसी क्या होती है ? वो बोली— तुम्हारे वादों जैसी होती है ! इंतज़ार में बहुत तड़पाती है, झूठ बोलती है सताती है, तुम तो आ भी जाते हो, ये कभी नहीं आती है ! एक विद्वान… Continue reading डैमोक्रैसी / अशोक चक्रधर
जिज्ञासा / अशोक चक्रधर
एकाएक मंत्री जी कोई बात सोचकर मुस्कुराए, कुछ नए से भाव उनके चेहरे पर आए। उन्होंने अपने पी.ए. से पूछा— क्यों भई, ये डैमोक्रैसी क्या होती है ? पी.ए. कुछ झिझका सकुचाया, शर्माया। -बोलो, बोलो डैमोक्रैसी क्या होती है ? -सर, जहां जनता के लिए जनता के द्वारा जनता की ऐसी-तैसी होती है, वहीं डैमोक्रैसी… Continue reading जिज्ञासा / अशोक चक्रधर
रोटी का सवाल / अशोक चक्रधर
कितनी रोटी गाँव में अकाल था, बुरा हाल था। एक बुढ़ऊ ने समय बिताने को, यों ही पूछा मन बहलाने को- ख़ाली पेट पर कितनी रोटी खा सकते हो गंगानाथ ? गंगानाथ बोला- सात ! बुढ़ऊ बोला- ग़लत ! बिलकुल ग़लत कहा, पहली रोटी खाने के बाद पेट ख़ाली कहाँ रहा। गंगानाथ, यही तो मलाल… Continue reading रोटी का सवाल / अशोक चक्रधर
मंत्रिमंडल विस्तार / अशोक चक्रधर
आप तो जानते हैं सपना जब आता है तो अपने साथ लाता है भूली-भटकी भूखों का भोलाभाला भंडारा। जैसे हमारे केन्द्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार हे करतार ! सत्तर मंत्रियों के बाद भी लंबी कतार। अटल जी बोले— अशोक ! कैसे लगाऊं रोक ? इतने सारे मंत्री हो गए, और जो नहीं हो पाए वो दसियों… Continue reading मंत्रिमंडल विस्तार / अशोक चक्रधर
गति का कुसूर / अशोक चक्रधर
क्या होता है कार में- पास की चीज़ें पीछे दौड़ जाती है तेज़ रफ़तार में! और ये शायद गति का ही कुसूर है कि वही चीज़ देर तक साथ रहती है जो जितनी दूर है।
मतपेटी से राजा / अशोक चक्रधर
भूतपूर्व दस्यू सुन्दरी, संसद कंदरा कन्दरी ! उन्होंने एक बात कही, खोपड़ी चकराए बिना नहीं रही। माथा ठनका, क्योंकि वक्तव्य था उनका सुन लो इस चंबल के बीहड़ों की बेटी से राजा पहले पैदा होता था रानी के पेट से अब पैदा होता है मतपेटी से। बात चुस्त है, सुनने में भी दुरुस्त है, लेकिन… Continue reading मतपेटी से राजा / अशोक चक्रधर
खींचो खींचो / अशोक चक्रधर
कौन कह मरा है कि कैमरा हो हमेशा तुम्हारे पास, आंखों से ही खींच लो समंदर की लहरें पेड़ों की पत्तियां मैदान की घास !