मंत्रिमंडल विस्तार / अशोक चक्रधर

आप तो जानते हैं
सपना जब आता है
तो अपने साथ लाता है
भूली-भटकी भूखों का
भोलाभाला भंडारा।

जैसे
हमारे केन्द्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार
हे करतार !
सत्तर मंत्रियों के बाद भी
लंबी कतार।

अटल जी बोले—
अशोक !
कैसे लगाऊं रोक ?
इतने सारे मंत्री हो गए,
और जो नहीं हो पाए
वो दसियों बार रो गए।
इतने विभाग कहां से लाऊं,
सबको मंत्री कैसे बनाऊं ?

मैंने कहा—
अटल जी !
जानता हूं
जानता हूं, आपकी पीड़ा,
कॉकरोच से भी ज़्यादा
जानदार होता है—
कुर्सी का कीड़ा !
कुलबुलाता है, छटपटाता है,
पटकी देने की
धमकी से पटाता है।
मैं जानता हूं
कुर्सी न पाने वाले
घूम रहे हैं उखड़े-उखड़े,
और ख़ुश करने के चक्कर में
अपने किए हैं
एक-एक विभाग के
दो-दो टुकड़े।
मेरे सुझाव पर विचार करिए
अब दो के चार करिए।
वे बोले—
कैसे ?

मैंने कहा—
ऐसे
जैसे आपने
मानव संसाधन से
खेलकूद मंत्रालय अलगाया है,
इस तरह से
एक कैबिनेट मंत्री बढ़ाया है।
अब ये जो मंत्रालय है
खेलकूद का
यहां दो लोग मज़ा ले सकते हैं
एक अमरूद का।
एक को बनाइए खेल मंत्री,
दूसरे को कूद मंत्री।
सारा काम लोकतंत्री !!

अटल जी बोले—
अशोक !
इसी बात का तो है शोक।
अपने काबीना में
जितने मंत्री हैं
आधे खेल मंत्री
आधे कूदमंत्री हैं।
असंतुष्ट
दुष्ट खेल, खेल रए ऐं,
वक्ष पर
प्रत्यक्ष दंड पेल रए ऐं।
हमीं जानते ऐं कैसे झेल रए ऐं।

मैंने कहा—
बिलकुल मत झेलिए।
खुलकर खोलिए।
सबको ख़ुश करने के चक्कर में
लगे रहे
और विहिप की व्हिप पर
सिर्फ़ राम नाम जपना है,
तो याद रखिए
सत्ता में बने रहना
सपना है।

देश को नहीं चाहिए
कोई व्यक्तिगत
या धार्मिक वर्जना,
देश को चाहिए
हर क्षेत्र में सर्जना।
देश को नहीं चाहिए
फ़कत उद्घोषण,
देश को चाहिए
जन-जन का पोषण।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *