रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है / गुलज़ार

रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है रात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं कांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता है ख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है चाँद की किरणों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती है और सन्नाटों की इक धूल… Continue reading रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है / गुलज़ार

पूरा दिन / गुलज़ार

मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है, झपट लेता है, अंटी से कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नहीं होती, खरे दिन को भी खोटा समझ के भूल जाता हूँ मैं गिरेबान से पकड़ कर मांगने वाले भी मिलते हैं… Continue reading पूरा दिन / गुलज़ार

हम को मन की शक्ति देना / गुलज़ार

हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करें दूसरो की जय से पहले, ख़ुद को जय करें। भेद भाव अपने दिल से साफ कर सकें दोस्तों से भूल हो तो माफ़ कर सके झूठ से बचे रहें, सच का दम भरें दूसरो की जय से पहले ख़ुद को जय करें हमको मन की शक्ति… Continue reading हम को मन की शक्ति देना / गुलज़ार