तू मुझ को जो इस शहर में लाया नहीं होता मैं बे-सर-ओ-सामाँ कभी रूसवा नहीं होता कुछ पेड़ भी बे-फ़ैज हैं इस राह-गुज़र के कुछ धूप भी ऐसी है के साया नहीं होता ख़्वाबों में जो इक शहर बना देता है मुझ को जब आँख खुली हो तो वो चेहरा नहीं होता किस की है… Continue reading तू मुझ को जो इस शहर में लाया नहीं होता / फ़रहत एहसास
Category: Farhat Ehsas
सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं / फ़रहत एहसास
सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं आँखें क़लील होती हुई और कसीर मैं मस्जिद की सीढ़ियों पे गदा-गर ख़ुदा का नाम मस्जिद के बाम ओ दर पे अमीर ओ कबीर मैं दर-अस्ल इस जहाँ को ज़रूरत नहीं मेरी हर-चंद इस जहाँ के लिए ना-गुज़ीर मैं मैं भी यहाँ हूँ उस की शहादत में किस को… Continue reading सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं / फ़रहत एहसास
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं / फ़रहत एहसास
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं और उस के बाद गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं तेरे होंटों के सहरा में तेरी आँखों के जंगल में जो अब तक पा चुका हूँ उस को खोना चाहता हूँ मैं ये कच्ची मिट्टीयों को ढेर अपने चाक पर रख ले तेरी रफ़्तार का हम-रक़्स… Continue reading मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं / फ़रहत एहसास
कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते / फ़रहत एहसास
कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते हमें सुब्ह कहाँ से मिले के कभी कोई रात सियाह नहीं करते हाथों से उठाते हैं जो मकाँ आँखों से गिराते रहते हैं सहराओं के रहने वाले हम शहरों से निबाह नहीं करते बेकार सी मिट्टी का इक ढेर बने बैठ रहते हैं हम… Continue reading कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते / फ़रहत एहसास
काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से गुलाम हो गया / फ़रहत एहसास
काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से गुलाम हो गया फिर से तमाम शहर पे इश्क़ हराम हो गया मैं ने तो अपने सारे फूल उस के चमन को दे दिए ख़ुश-बू उड़ी तो इक ज़रा मेरा भी नाम हो गया यार ने मेरी ख़ाक-ए-ख़ाम रख ली फिर अपने चाक पर मैं तो सफ़र पे चल पड़ा… Continue reading काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से गुलाम हो गया / फ़रहत एहसास
जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल / फ़रहत एहसास
जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल और अभी गहराई से पानी निकाल ऐ ख़ुदा मेरी रगों में दौड़ जा शाख़-ए-दिल पर इक हरी पत्ती निकाल भेज फिर से अपनी आवाज़ों का रिज़्क़ फिर मेरे सहरा से इक बस्ती निकाल मुझ से साहिल की मोहब्बत छीन ले मेरे घर के बीच इक नद्दी निकाल मैं… Continue reading जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल / फ़रहत एहसास
जिस्म के पार वो दिया सा है / फ़रहत एहसास
जिस्म के पार वो दिया सा है दरमियाँ ख़ाक का अँधेरा है खिल रहे हैं गुलाब होंटों पर और ख़्वाबों में उस का बोसा है मेरे आग़ोश में समा कर भी वो बहुत है तो इस्तिआरा है फिर से उन जू-ए-शीर आँखों ने बे-सुतूँ जिस्म को गिराया है वो तुम्हारी हरी-भरी आँखें रेत को देख… Continue reading जिस्म के पार वो दिया सा है / फ़रहत एहसास
हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है / फ़रहत एहसास
हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है शहर में जो भी हुआ है वो ख़ता मेरी है ये जो है ख़ाक का इक ढेर बदन है मेरा वो जो उड़ती हुई फिरती है क़बा मेरी है वो जो इक शोर सा बरपा है अमल है मेरा ये जो तनहाई बरसती है सज़ा है… Continue reading हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है / फ़रहत एहसास
अब दिल की तरफ दर्द की यलगार बहुत है / फ़रहत एहसास
अब दिल की तरफ दर्द की यलगार बहुत है दुनिया मेरे जख़्मों की तलबगार बहुत है अब टूट रहा है मेरी हस्ती का तसव्वुर इस वक़्त मुझे तुझ से सरोकार बहुत है मिट्टी की ये दीवार कहीं टूट न जाए रोको के मेरे ख़ून की रफ़्तार बहुत है हर साँस उखड़ जाने की कोशिश में… Continue reading अब दिल की तरफ दर्द की यलगार बहुत है / फ़रहत एहसास
गौर से देखो तो हर चेहरे की बेनूरी का राज / फ़रहत एहसास
गौर से देखो तो हर चेहरे की बेनूरी का राज बादशाह-ए-वक़्त के चेहरे की ताबानी में है ! चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है अक्स किसका है कि इतनी रौशनी पानी में है !