फिर वही चाँद वही रात कहाँ से लाऊँ
उससे दोबारा मुलाक़ात कहाँ से लाऊँ !
फाका करने से फकीरी तो नहीं मिल जाती
तंगदस्ती में करामात कहाँ से लाऊँ !
हर घड़ी जागता रहता है दुखों का सूरज
नींद आती है मगर रात कहाँ से लाऊँ !
फिर वही चाँद वही रात कहाँ से लाऊँ
उससे दोबारा मुलाक़ात कहाँ से लाऊँ !
फाका करने से फकीरी तो नहीं मिल जाती
तंगदस्ती में करामात कहाँ से लाऊँ !
हर घड़ी जागता रहता है दुखों का सूरज
नींद आती है मगर रात कहाँ से लाऊँ !