फिर तो / अशोक चक्रधर

आख़िर कब तक इश्क इकतरफ़ा करते रहोगे, उसने तुम्हारे दिल को चोट पहुँचाई तो क्या करोगे? -ऐसा हुआ तो लात मारूँगा उसके दिल को। -फिर तो पैर में भी चोट आएगी तुमको।

सिक्के की औक़ात / अशोक चक्रधर

एक बार बरखुरदार! एक रुपए के सिक्के, और पाँच पैसे के सिक्के में, लड़ाई हो गई, पर्स के अंदर हाथापाई हो गई। जब पाँच का सिक्का दनदना गया तो रुपया झनझना गया पिद्दी न पिद्दी की दुम अपने आपको क्या समझते हो तुम! मुझसे लड़ते हो, औक़ात देखी है जो अकड़ते हो! इतना कहकर मार… Continue reading सिक्के की औक़ात / अशोक चक्रधर

गुनह करेंगे / अशोक चक्रधर

हम तो करेंगे गुनह करेंगे पुनह करेंगे। वजह नहीं बेवजह करेंगे। कल से ही लो कलह करेंगे। जज़्बातों को जिबह करेंगे निर्लज्जों से निबह करेंगे सुलगाने को सुलह करेंगे। हम ज़ालिम क्यों जिरह करेंगे संबंधों में गिरह करेंगे रस विशेष में विरह करेंगे जो हो, अपनी तरह करेंगे रात में चूके सुबह करेंगे गुनह करेंगे… Continue reading गुनह करेंगे / अशोक चक्रधर

कामना / अशोक चक्रधर

सुदूर कामना सारी ऊर्जाएं सारी क्षमताएं खोने पर, यानि कि बहुत बहुत बहुत बूढ़ा होने पर, एक दिन चाहूंगा कि तू मर जाए। (इसलिए नहीं बताया कि तू डर जाए।) हां उस दिन अपने हाथों से तेरा संस्कार करुंगा, उसके ठीक एक महीने बाद मैं मरूंगा। उस दिन मैं तुझ मरी हुई का सौंदर्य देखूंगा,… Continue reading कामना / अशोक चक्रधर

तेरा है / अशोक चक्रधर

तू गर दरिन्दा है तो ये मसान तेरा है, अगर परिन्दा है तो आसमान तेरा है। तबाहियां तो किसी और की तलाश में थीं कहां पता था उन्हें ये मकान तेरा है। छलकने मत दे अभी अपने सब्र का प्याला, ये सब्र ही तो असल इम्तेहान तेरा है। भुला दे अब तो भुला दे कि… Continue reading तेरा है / अशोक चक्रधर

ससुर जी उवाच / अशोक चक्रधर

डरते झिझकते सहमते सकुचाते हम अपने होने वाले ससुर जी के पास आए, बहुत कुछ कहना चाहते थे पर कुछ बोल ही नहीं पाए। वे धीरज बँधाते हुए बोले- बोलो! अरे, मुँह तो खोलो। हमने कहा- जी. . . जी जी ऐसा है वे बोले- कैसा है? हमने कहा- जी. . .जी ह़म हम आपकी… Continue reading ससुर जी उवाच / अशोक चक्रधर

हंसो और मर जाओ (कविता) / अशोक चक्रधर

हंसो, तो बच्चों जैसी हंसी, हंसो, तो सच्चों जैसी हंसी। इतना हंसो कि तर जाओ, हंसो और मर जाओ। हँसो और मर जाओ चौथाई सदी पहले लगभग रुदन-दिनों में जिनपर हम हंसते-हंसते मर गए उन प्यारी बागेश्री को समर-पति की ओर स-समर्पित श्वेत या श्याम छटांक का ग्राम धूम या धड़ाम अविराम या जाम, जैसा… Continue reading हंसो और मर जाओ (कविता) / अशोक चक्रधर

रंग जमा लो (कविता) / अशोक चक्रधर

पात्र पतिदेव श्रीमती जी भाभी टोली नायक टोली उपनायक टोली नायिका टोली उपनायिका भूतक-1 भूतक-2 भूतक-3 भूतक-4 बिटिया (पतिदेव दबे पांव घर आए और मूढ़े के पीछे छिपने लगे। उनकी सात बरस की बिटिया ने उन्हें छिपते हुए देख लिया।) पतिदेव : (फ़िल्म ‘हकीक़त’ की गीत-पैरौडी) मैं ये सोचकर अपने घर में छिपा हूं कि… Continue reading रंग जमा लो (कविता) / अशोक चक्रधर

मनोहर को विवाह-प्रेरणा / अशोक चक्रधर

रुक रुक ओ टेनिस के बल्ले, जीवन चलता नहीं इकल्ले ! अरे अनाड़ी, चला रहा तू बहुत दिनों से बिना धुरी के अपनी गाड़ी ! ओ मगरुरी ! गांठ बांध ले, इस जीवन में गांठ बांधना शादी करना बहुत ज़रूरी। ये जीवन तो है टैस्ट मैच, जिसमें कि चाहिए बैस्ट मैच। पहली बॉल किसी कारण… Continue reading मनोहर को विवाह-प्रेरणा / अशोक चक्रधर

भोजन प्रशंसा / अशोक चक्रधर

बागेश्वरी, हृदयेश्वरी, प्राणेश्वरी। मेरी प्रिये ! तारीफ़ के वे शब्द लाऊं कहां से तेरे लिये ? जिनमें हृदय की बात हो, बिन कलम, बिना दवात हो। मन-प्राण-जीवन संगिनी, अर्द्धांगिनी, ….न न न न न….पूर्णांगिनी। खाकर ये पूरी और हलुआ, मस्त ललुआ ! (थाली के व्यंजन गिनते हुए) एक, दो, तीन, चार, पांच, छः, सात बज… Continue reading भोजन प्रशंसा / अशोक चक्रधर