मार्खेज को डिमेंशिया हो गया है। जीवन की उत्ताल तरंगों के बीच गिर-गिर पड़ते हैं स्मृति की नौका से बिछल-बिछलकर; फिर भरसक-भरजाँगर कोशिश कर बमुश्किल तमाम चढ़ पाते हैं नौका पर, उखड़ती साँसों की बारीक डोर थाम। जिसे इनसानियत का सत्व मानते हैं वह वही स्मृति साथ छोड़ रही है उनका विस्मृति के महाप्रलय में… Continue reading मार्खेज को डिमेंशिया हो गया है / अंशु मालवीय
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करमन की गति न्यारी / अंशु मालवीय
कर्ज़ की हमको दवा बताई कर्ज़ ही थी बीमारी साधो ! करमन की गति न्यारी । गेहूँ उगे शेयर नगरी में खेतों में बस भूख उग रही मूल्य सूचकांक पे चिड़िया गाँव शहर की प्यास चुग रही करखानों में हाथ कट रहे मक़तल में त्यौहारी साधो ! करमन की गति न्यारी । बढ़ती महंगाई की रस्सी ग्रोथ… Continue reading करमन की गति न्यारी / अंशु मालवीय
…संतानें हतभागी / अंशु मालवीय
जब से भूख तुम्हारी जागी धरती बिकी बिकी धरती की संतानें हतभागी पांड़े कौन कुमति तोहे लागी ! धरती के भीतर का लोहा काढ़ा, हमने तार खिंचाए तार पे फटी दिहाड़ी लटकी बिजली की विरुदावलि गाए जब से भूख तुम्हारी जागी लोहा बिका बिकी लोहे की संतानें हतभागी ! पांड़े कौन कुमति तोहे लागी ! धरती के भीतर… Continue reading …संतानें हतभागी / अंशु मालवीय
हम तुमसे क्या उम्मीद करते / अंशु मालवीय
हम तुमसे क्या उम्मीद करते …हम तुमसे क्या उम्मीद करते ब्राम्हण देव! तुमने तो खुद अपने शरीर के बाएं हिस्से को अछूत बना डाला बनाया पैरों को अछूत रंभाते रहे मां…मां और मां, और मातृत्व रस के रक्ताभ धब्बों को बना दिया अछूत हमारे चलने को कहा रेंगना भाषा को अछूत बना दिया छंद को,… Continue reading हम तुमसे क्या उम्मीद करते / अंशु मालवीय
वक्त / अंशु मालवीय
निजी जीवन का राजनैतिक रेखाचित्र इकहत्तर की लड़ाई के वक्त पैदा हुआ मैं स्कूल गया इमेरजेन्सी में, मस्जिद गिरने के साथ गया विश्वविद्यालय, नई आर्थिक नीति का साथ बाहर आ गया वहाँ से, फिलहाल बेरोज़गार हूँ और किसी बड़ी राजनीतिक घटना में रोज़गार तलाश रहा हूँ ।
बच्चा / अंशु मालवीय
कालीन कारख़ाने में बच्चे कालीन कारख़ाने में बच्चे, खाँस्ते हैं फेफड़े को चीरते हुए उनके नन्हें गुलाबी फेफड़े गैस के गुब्बारों से थे, उन्हें खुले आकाश में उड़ा देने को बेचैन – मौत की चिड़िया कारख़ानों में उड़ते रेशों से उनके उन्हीं फेफड़ों में घोंसला बना रही है । ज़रा सोचो जो तुम्हारे खलनायकीय तलुओं… Continue reading बच्चा / अंशु मालवीय
दोस्त / अंशु मालवीय
आश्वसित मुँह से क्या कहूँ, मेरा तो पूरा वजूद तेरे लिये शुभकामना है मेरे दोस्त ! तुझे क्या बताऊँ कि बिना दोस्त के नास्तिक नहीं हुआ जा सकता – समाज में असुरक्षा है बहुत, आदमी के डर ने बनाया है ईश्वर और उसके साहस ने बनाई है दोस्ती तुझसे क्या क़रार लूँ, तेरा पूरा वजूद ही… Continue reading दोस्त / अंशु मालवीय
हिंदू राष्ट्र के शहीदों के प्रति / अंशु मालवीय
जहाँ जली वह ट्रेन उसके अगले स्टेशन पर हिंदू राष्ट्र था। जैसे विश्व विजय थी कारगिल के उस पार हालांकि अभी मंज़ूर नहीं थी अमेरिका को वैसे ही जैसे अमेरिका और अम्बानी दोनों को मंज़ूर नहीं था फिलहाल हिंदू राष्ट्र जले दुधमुंहे बच्चे अभी जिन्हें हिंदू बनाया जाना था जली वे औरतें जो धरम के… Continue reading हिंदू राष्ट्र के शहीदों के प्रति / अंशु मालवीय
निजी जीवन का राजनैतिक रेखाचित्र / अंशु मालवीय
इकहत्तर की लड़ाई के वक्त पैदा हुआ में स्कूल गया इमरजेंसी में, मस्जिद गिरने के साथ गया विश्वविद्यालय नई आर्थिक नीति के साथ बाहर आ गया वहां से, फिलहाल बेरोजगार हूँ और किसी बड़ी राजनीतिक घटना में रोज़गार तलाश रहा हूँ।
मैं बहुत खुश थी अम्मा! / अंशु मालवीय
सब कुछ ठीक था अम्मा ! तेरे खाए अचार की खटास तेरी चखी हुई मिट्टी अक्सर पहुँचते थे मेरे पास…! सूरज तेरी कोख से छनकर मुझ तक आता था। मैं बहुत खुश थी अम्मा ! मुझे लेनी थी जल्दी ही अपने हिस्से की साँस मुझे लगनी थी अपने हिस्से की भूख मुझे देखनी थी अपने हिस्से की… Continue reading मैं बहुत खुश थी अम्मा! / अंशु मालवीय