एक उनींदी सुबह जब समेटती है कई अधूरे स्वप्नों को, अधखुली आँखों से विदा पाते हैं, भोर के धुंधले तारे, कुछ आशाओं को पोंछकर चमकाते हुए, अक्सर दिखती है, खिड़की के बाहर, फटी धुंध की चादर, उससे तिरता एक नन्हा मेघदूत, जिसके परों पर चलके आता है चमकीली धूप का एक नन्हा सा टुकड़ा भर… Continue reading स्वप्न जब सो जाते हैं / अंजू शर्मा
Category: Anju Sharma
पापा / अंजू शर्मा
उसके जन्म का कारण थे तुम, पर रहे हमेशा परिणाम से बेखबर, हर व्यस्त सड़क पर ढूँढा नन्ही सी एक हथेली ने तुम्हारी ऊँगली को, उसकी ह़र उपलब्धि तलाशती रही भीड़ में एक मुस्कुराता चेहरा, पीठ पर एक खुरदरा पर स्नेहिल आशीष, जीवन की घुमावदार पगडंडियों पर जब भी पाया तुम्हारा साथ सदा संकोच ने… Continue reading पापा / अंजू शर्मा
मुर्दों में भी हरकत होती है कहीं / अंजू शर्मा
इतिहास की किताबें सुलग रही हैं एक कोने में, रो रहे हैं अशोक, अकबर और चन्द्रगुप्त मौर्य, करोड़ों साल पुरानी एक सभ्यता गिन रही है अपने साल और हर शताब्दी पर, भूल जाती है गिनती, हर एक फतवे और बैन का तमगा अपनी पीठ पर लादे, हर बार कुछ और झुक जाती है, शायद रीढ़… Continue reading मुर्दों में भी हरकत होती है कहीं / अंजू शर्मा
डर / अंजू शर्मा
पुरुष ने देखा प्रेम से, और कहा, कितनी सुंदर हो तुम, शर्मा गयी स्त्री, पुरुष ने देखा कौतुक से, और कहा कुछ नहीं, औरत ने पाया, उसकी आँखों के लाल डोरों को, अपने जिस्म पर रेंगते हुए असंख्य साँपों में बदलते हुए, इस बार डर गयी स्त्री…
शायद यही एक जरिया है मेरे प्रतिकार का / अंजू शर्मा
फिल्म चलती है, समेटती है जाने कितने ही दृश्यों को एक डायलोग से शुरू हो ख़त्म हो जाती है एक डायलोग पर, मध्यांतर में भी उभरते हैं कितने ही दृश्य, एक तानाशाह डालता है अपना जाल और हर बार फंस जाते हैं तेल के कुछ कुँए, वहीँ सर झुकाए खड़ा है कोई आखिरी गोली की… Continue reading शायद यही एक जरिया है मेरे प्रतिकार का / अंजू शर्मा
रास्ता / अंजू शर्मा
वह हैरान है, प्रलोभनों की रंगीन पतंगें उसके मुंह फेर लेने पर क्यों बदल जाती हैं धमकियों और साजिशों के उकाबों में, वायदों से सजी और ऊँचाइयों के ख्वाब दिखाती, सदैव प्रस्तुत वे सीढियां, अनदेखा करने पर क्यों बदल जाती हैं कीचड भरे, आरोपों से मलीन गंदे रास्तों में, एक औरत का स्वयं अपना रास्ता… Continue reading रास्ता / अंजू शर्मा
मन / अंजू शर्मा
मेरा मन जैसे खेत में खड़ा एक बिजुका महसूसता है हर पल तुम्हारी आवन-जावन को बिना कोई सवाल किये… और भावनाएं जैसे पीहर में बैठी विवाहिता गिन रही हो गौने के दिन, बार बार देखती हुई टूटा बक्सा और मुट्ठी भर नोट… फिर भी उम्मीदें जैसे खेत की मेड़ों पर घूमते धूसरित कदम दौड़ पड़ते… Continue reading मन / अंजू शर्मा
मृत्यु और मेरा शहर / अंजू शर्मा
बचपन में पढ़ी गीता का अर्थ मैं जान पाई बहुत देर बाद, मेरे शहर में जहाँ जीवन क्षणभंगुर है और मृत्यु एक सच्चाई है… दादाजी कहा करते थे मृत्यु से छ माह पहले दिखना बंद हो जाता है ध्रुवतारा, मेरे शहर की चकाचौंध ने लील लिया ध्रुवतारे की चमक को जाने कितनी ही छमाहियों पहले… Continue reading मृत्यु और मेरा शहर / अंजू शर्मा
पब से निकली लड़की / अंजू शर्मा
पब से निकली लड़की नहीं होती है किसी की माँ, बेटी या बहन, पब से निकली लड़की का चरित्र मोहताज हुआ करता है घडी की तेजी से चलती सुइयों का, जो अपने हर कदम पर कर देती हैं उसे कुछ और काला, पब से निकली लड़की के पीछे छूटी लक्ष्मणरेखाएं हांट करती हैं उसे जीवनपर्यंत,… Continue reading पब से निकली लड़की / अंजू शर्मा
मेरी माँ / अंजू शर्मा
अपनी माँ का नाम मैंने कभी नहीं सुना लोग कहते हैं फलाने की माँ, फलाने की पत्नी और फलाने की बहू एक नेक औरत थी, किसी को नहीं पता माँ की आवाज़ कैसी थी, मेरे ननिहाल के कुछ लोग कहते हैं माँ बहुत अच्छा गाती थी, माँ की गुनगुनाहट ने कभी भी नहीं लाँघी थी… Continue reading मेरी माँ / अंजू शर्मा