जीवन में चिंताएँ / अंजू शर्मा

जीवन स्वतः पलटे जाते पृष्ठों वाली एक किताब न बन जाए, बोरियत हर अध्याय के अंत पर चस्पा न हो इसके लिए जरूरी है कुछ सरस बुकटैग्स, जरूरी है बने रहना, थोड़ा सा नीमपागल थोड़ा सी गंभीरता थोड़ा सा बचपना थोड़ा सी चिंताएँ और थोड़ा सा सयानापन, होना ही चाहिए सब कुछ ज़िदगी में पर… Continue reading जीवन में चिंताएँ / अंजू शर्मा

बंद हुए कश्मीरी बैंड प्रगाश के लिए / अंजू शर्मा

सैय्याद का यह फरमान है कि बुलबुलों का चहकना मौसम के अनुकूल नहीं है हब्बा खातून और लल्लेश्वरी की सरजमीं पर अब नहीं गूंजेंगीं कभी कोयलों की मीठी तानें, कुछ नहीं बदलेगा, पृथ्वी यूँ ही सूर्य के चक्कर लगाएगी, यूँ ही देसी पासपोर्ट पर सफ़र करते तथाकथित देशवासी सरहद पार से फतवों की झोलियाँ भरकर… Continue reading बंद हुए कश्मीरी बैंड प्रगाश के लिए / अंजू शर्मा

उम्मीद / अंजू शर्मा

वे कहते हैं दुनिया टिकी है शेषनाग के फन पर, दुनिया कायम है उम्मीद पर, मैं कहती हूँ आशा और निराशा के संतुलन का नाम ही उम्मीद है दुनिया नहीं टिकी शेषनाग के फन पर यह स्थिर है आशा और निराशा के संतुलन पर इन दोनों के मध्य बिछी है उम्मीद की नर्म जमीन, जिस… Continue reading उम्मीद / अंजू शर्मा

हम निकल पड़े है / अंजू शर्मा

हमने मांगी जिंदगी तो थोपे गए तयशुदा फलसफे, चाहीं किताबें तो हर बार थमा दिए गए अड़ियल शब्दकोष, हमारे चलने, बोलने और हंसने के लिए तय की गयीं एकतरफा आचार-संहिताएँ, हर मुस्कराहट की एवज में चुकाते रहे हम कतरा कतरा सुकून हम इतिहास की नींव का पत्थर हैं किन्तु हमारे हर बढ़ते कदम के नीचे… Continue reading हम निकल पड़े है / अंजू शर्मा

मैं तुम हो जाती हूँ / अंजू शर्मा

तन्हाई के किन्ही खास पलों में कभी कभी सोचती हूँ मैं एक मल्लिका हूँ तुम्हारी कायनात की, जिसे हर रात बदलने से बचना है सिन्ड्रेला में, या तुम्हारे इर्द गिर्द घूमती मैं बदल गयी हूँ, तुम्हारे उपग्रह में, और चाँद अब दूर से ही मुझे देखकर कुढा करता है, या तुम उग आये हो मेरे… Continue reading मैं तुम हो जाती हूँ / अंजू शर्मा

स्मृतियाँ / अंजू शर्मा

हर बढ़ते कदम पर बहुत कुछ है जो पीछे छूट जाता है पीछे छूटी हुई पगडंडियों से मुड़ मुड़ कर गुज़रना हर बार सुखद नहीं रह पाता, ज्यों का त्यों रह जाना कठिन है स्वयं का, लोगों का, चीज़ों का जीवन का, बदलाव के पड़ावों को छूते हुए स्मृतियाँ अक्सर पुकारती हैं लुभाती हैं बुलाती… Continue reading स्मृतियाँ / अंजू शर्मा

जरूरी काम / अंजू शर्मा

आपको शायद ये गैरजरूरी लगे, आलोचनाओं के निर्दयी हथौड़ों के प्रति अक्सर व्यक्त करती हूँ आभार, देती हूँ धन्यवाद, सहेजती हूँ चोटिल शब्द, सहलाती हूँ छलनी स्वाभिमान, संजोती हूँ मनोबल, रिसते घावों से पाती हूँ रोशनाई, मानती हूँ ऐसे मौकों पर मेरा फिर से खड़े हो जाना ही, दुनिया का सबसे जरूरी काम है…

चेतावनी / अंजू शर्मा

सुनो कि मेरा मौन एक चीत्कार है यह डेसिबल की वह अंतिम सीमा है जहाँ शांति के आदी तुम्हारे कान कांपते हुए थामते हैं श्वेत ध्वज, मेरे मौन के पांवों ने उतार फेंकी है रुपहली झाँझरें, उसके पांव तले दम तोड़ रही हैं वे तमाम पोथियाँ जो पनाहगाह थी सभी ‘दिव्य’ वाक्यों की, जो धकेलते… Continue reading चेतावनी / अंजू शर्मा

शिखर पुरुष / अंजू शर्मा

ओ शिखर पुरुष, हिमालय से भी ऊंचे हो तुम और मैं दूर से निहारती, सराहती क्या कभी छू पाऊँगी तुम्हे, तुम गर्वित मस्तक उठाये देखते हो सिर्फ आकाश को, जहाँ तुम्हारे साथी हैं दिनकर और शशि, और मैं धरा के एक कण की तरह, तुम तक पहुँच पाने की आस में उठती हूँ और गिर… Continue reading शिखर पुरुष / अंजू शर्मा

वे आँखें / अंजू शर्मा

उफ़ वे आँखें, एक जोड़ा, दो जोड़ा या अनगिनत जोड़े, घूरती हैं सदा मुझको, तय किये हैं कई दुर्गम मार्ग मैंने, पर पहुँच नहीं पाई उस दुनिया में, जहाँ मैं केवल एक इंसान हूँ एक मादा नहीं, वीभत्स चेहरे घेरे हैं मुझे, और कुत्सित दृष्टि का कोई विषबुझा बाण चीरता है मेरी अस्मिता को, आहत… Continue reading वे आँखें / अंजू शर्मा