ख़्वाब-महल में कौन सर-ए-शाम आ कर पत्थर मारता है / अख़्तर होश्यारपुरी

ख़्वाब-महल में कौन सर-ए-शाम आ कर पत्थर मारता है रोज़ इक ताज़ा काँच का बर्तन हाथ से गिर कर टूटता है मकड़ी ने दरवाज़े पे जाले दूर तलक बुन रक्खे हैं फिर भी कोई गुज़रे दिनों की ओट से अंदर झाँकता हैं शोर सा उठता रहता है दीवारें बोलती रहती हैं शाम अभी तक आ… Continue reading ख़्वाब-महल में कौन सर-ए-शाम आ कर पत्थर मारता है / अख़्तर होश्यारपुरी

जो मुझ को देख के कल रात रो पड़ा था बहुत / अख़्तर होश्यारपुरी

जो मुझ को देख के कल रात रो पड़ा था बहुत वो मेरा चख भी न था फिर भी आश्ना था बहुत मैं अब भी रात गए उस की गूँज सुनता हूँ वो हर्फ़ कम था बहुत कम मगर सदा था बहुत ज़मीं के सीने में सूरज कहाँ से उतरे हैं फ़लक पे दूर कोई… Continue reading जो मुझ को देख के कल रात रो पड़ा था बहुत / अख़्तर होश्यारपुरी

हम अक्सर तीरगी में अपने पीछे छुप गए हैं / अख़्तर होश्यारपुरी

हम अक्सर तीरगी में अपने पीछे छुप गए हैं मगर जब रास्तों में चाँद उभरा चल पड़े हैं ज़माना अपनी उर्यानी पे ख़ूँ रोएगा कब तक हमें देखो कि अपने आप को ओढ़े हुए हैं मिरा बिस्तर किसी फ़ुट-पाथ पर जा कर लगा दो मिरे बच्चे अभी से मुझ से तरका माँगते हैं बुलंद आवाज़… Continue reading हम अक्सर तीरगी में अपने पीछे छुप गए हैं / अख़्तर होश्यारपुरी

आँधी में चराग़ जल रहे हैं / अख़्तर होश्यारपुरी

आँधी में चराग़ जल रहे हैं क्या लोग हवा में पल रहे हैं ऐ जलती रूतो गवाह रहना हम नंगे पाँव चल रहे हैं कोहसारों पे बर्फ़ जब से पिघली दरिया तेवर बदल रहे हैं मिट्टी में अभी नमी बहुत है पैमाने हुनूज़ ढल रहे हैं कह दे कोई जा के ताएरों से च्यूँटी के… Continue reading आँधी में चराग़ जल रहे हैं / अख़्तर होश्यारपुरी