हम उन सवालों को लेकर उदास कितने थे जवाब जिनके यहीं आसपास कितने थे मिली तो आज किसी अजनबी सी पेश आई इसी हयात को लेकर कयास कितने थे हंसी, मज़ाक, अदब, महफिलें, सुखनगोई उदासियों के बदन पर लिबास कितने थे पड़े थे धूल में अहसास के नगीने सब तमाम शहर में गौहरशनाश कितने थे… Continue reading उदास कितने थे–गजल / अखिलेश तिवारी
Category: Akhilesh Tiwari
वक़्त कर दे न पाएमाल मुझे / अखिलेश तिवारी
वक़्त कर दे न पाएमाल मुझे अब किसी शक्ल में तो ढाल मुझे अक़्लवालों में है गुज़र मेरा मेरी दीवानगी संभाल मुझे मैं ज़मीं भूलता नहीं हरगिज़ तू बड़े शौक से उछाल मुझे तजर्बे थे जुदा-जुदा अपने तुमको दाना दिखा था, जाल मुझे और कब तक रहूँ मुअत्तल-सा कर दे माज़ी मेरे बहाल मुझे
मुलाहिज़ा हो मेरी भी उड़ान, पिंजरे में / अखिलेश तिवारी
मुलाहिज़ा हो मेरी भी उड़ान, पिंजरे में अता हुए हैं मुझे दो जहान, पिंजरे में है सैरगाह भी और इसमें आबोदाना भी रखा गया है मेरा कितना ध्यान पिंजरे में यहीं हलाक हुआ है परिन्दा ख़्वाहिश का तभी तो हैं ये लहू के निशान पिंजरे में फलक पे जब भी परिन्दों की सफ़ नज़र आई… Continue reading मुलाहिज़ा हो मेरी भी उड़ान, पिंजरे में / अखिलेश तिवारी
ग़मों के नूर में लफ़्जों को ढालने निकले / अखिलेश तिवारी
ग़मों के नूर में लफ़्जों को ढालने निकले गुहरशनास समंदर खंगालने निकले खुली फ़िज़ाओं के आदी हैं ख़्वाब के पंछी इन्हें क़फ़स में कहाँ आप पालने निकले सफ़र है दूर का और बेचराग़ दीवाने तेरे ही ज़िक्र से रातें उजालने निकले शराबखानो कभी महफ़िलों की जानिब हम ख़ुद अपने आप से टकराव टालने निकले सियाह… Continue reading ग़मों के नूर में लफ़्जों को ढालने निकले / अखिलेश तिवारी
कहाँ तलक यूँ तमन्ना को दर-ब-दर देखूँ / अखिलेश तिवारी
कहाँ तलक यूँ तमन्ना को दर-ब-दर देखूँ सफ़र तमाम करूँ मैं भी अपना घर देखूँ सुना है मीर से दुनिया है आइनाख़ाना तो क्यों न फिर इस दुनिया को बन-सँवर देखूँ छिड़ी है जंग मुझे ले के ख़ुद मेरे भीतर फलक की बात रखूँ या शकिस्ताँ पर देखूँ हरेक शय है नज़र में अभी बहुत… Continue reading कहाँ तलक यूँ तमन्ना को दर-ब-दर देखूँ / अखिलेश तिवारी
तू इश्क में मिटा न कभी दार पर गया / अखिलेश तिवारी
तू इश्क में मिटा न कभी दार पर गया नायब ज़िन्दगी को भी बेकार कर गया मिटटी का घर बिखरना था आखिर बिखर गया अच्छा हुआ कि ज़ेहन से आंधी का डर गया बेहतर था कैद से ये बिखर जाना इसलिए ख़ुश्बू की तरह से मैं फिजा में बिखर गया ‘अखिलेश’ शायरी में जिसे ढूंढते… Continue reading तू इश्क में मिटा न कभी दार पर गया / अखिलेश तिवारी
हम उन सवालों को लेकर उदास कितने थे / अखिलेश तिवारी
हम उन सवालों को लेकर उदास कितने थे जवाब जिनके यहीं आसपास कितने थे हंसी, मज़ाक, अदब, महफ़िलें, सुख़नगोई उदासियों के बदन पर लिबास कितने थे पड़े थे धूप में एहसास के नगीने सब तमाम शहर में गोहरशनाश कितने थे
पानी में जो आया है तो गहरे भी उतर जा / अखिलेश तिवारी
पानी में जो आया है तो गहरे भी उतर जा दरिया को खंगाले बिना गौहर न मिलेगा दर-दर यूँ भटकता है अबस जिसके लिए तू घर में ही उसे ढूंढ वो बाहर न मिलेगा ऐसे ही जो हुक्काम के सजदों में बिछेंगे काँधे पे किसी के भी कोई सर न मिलेगा महफूज़ तभी तक है… Continue reading पानी में जो आया है तो गहरे भी उतर जा / अखिलेश तिवारी
ख्वाबों की बात हो न ख्यालों की बात हो / अखिलेश तिवारी
ख्वाबों की बात हो न ख्यालों की बात हो मुफलिस की भूख उसके निवालों की बात हो अब ख़त्म भी हो गुज़रे जमाने का तज़्किरा इस तीरगी में कुछ तो उजालों की बात हो जिनको मिले फरेब ही मंजिल के नाम पर कुछ देर उनके पाँव के छालों की बात हो
नदी के ख़्वाब दिखायेगा तश्नगी देगा / अखिलेश तिवारी
नदी के ख़्वाब दिखायेगा तश्नगी देगा खबर न थी वो हमें ऐसी बेबसी देगा नसीब से मिला है इसे हर रखना कि तीरगी में यही ज़ख्म रौशनी देगा तुम अपने हाथ में पत्थर उठाये फिरते रहो मैं वो शजर हूँ जो बदले में छाँव ही देगा