पानी में जो आया है तो गहरे भी उतर जा
दरिया को खंगाले बिना गौहर न मिलेगा
दर-दर यूँ भटकता है अबस जिसके लिए तू
घर में ही उसे ढूंढ वो बाहर न मिलेगा
ऐसे ही जो हुक्काम के सजदों में बिछेंगे
काँधे पे किसी के भी कोई सर न मिलेगा
महफूज़ तभी तक है रहे छाँव में जब तक
जो धूप पड़ी मोम का पैकर न मिलेगा