क्योंकर ख़ुदा के अर्श के क़ायल हों ये अज़ीज़ जुगराफ़िये में अर्श का नक़्शा नहीं मिला क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ जान ही लेने की हिकमत में तरक़्क़ी देखी मौत का रोकने वाला कोई पैदा न हुआ तालीम का शोर ऐसा,… Continue reading हास्य-रस -सात / अकबर इलाहाबादी
Category: Akbar Allahabadi
हास्य-रस -छ: / अकबर इलाहाबादी
मय भी होटल में पियो,चन्दा भी दो मस्जिद में शेख़ भी ख़ुश रहे, शैतान भी बेज़ार न हो ऐश का भी ज़ौक़ दींदारी की शुहरत का भी शौक़ आप म्यूज़िक हाल में क़ुरआन गाया कीजिये गुले तस्वीर किस ख़ूबी से गुलशन में लगाया है मेरे सैयाद ने बुलबुल को भी उल्लू बनाया है मछली ने… Continue reading हास्य-रस -छ: / अकबर इलाहाबादी
हास्य-रस -पाँच / अकबर इलाहाबादी
फ़िरगी से कहा, पेंशन भी ले कर बस यहाँ रहिये कहा-जीने को आए हैं,यहाँ मरने नहीं आये बर्क़ के लैम्प से आँखों को बचाए अल्लाह रौशनी आती है, और नूर चला जाता है काँउंसिल में सवाल होने लगे क़ौमी ताक़त ने जब जवाब दिता हरमसरा की हिफ़ाज़त को तेग़ ही न रही तो काम देंगी… Continue reading हास्य-रस -पाँच / अकबर इलाहाबादी
हास्य-रस -चार / अकबर इलाहाबादी
तालीम लड़कियों की ज़रूरी तो है मगर ख़ातूने-ख़ाना हों, वे सभा की परी न हों जो इल्मों-मुत्तकी हों, जो हों उनके मुन्तज़िम उस्ताद अच्छे हों, मगर ‘उस्ताद जी’ न हों तालीमे-दुख़तराँ से ये उम्मीद है ज़रूर नाचे दुल्हन ख़ुशी से ख़ुद अपनी बारात में हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिले-ज़ब्ती समझते हैं कि जिनको पढ़ के… Continue reading हास्य-रस -चार / अकबर इलाहाबादी
हास्य-रस -तीन / अकबर इलाहाबादी
पुरानी रोशनी में और नई में फ़र्क़ है इतना उसे कश्ती नहीं मिलती इसे साहिल नहीं मिलता दिल में अब नूरे-ख़ुदा के दिन गए हड्डियों में फॉसफ़ोरस देखिए मेरी नसीहतों को सुन कर वो शोख़ बोला- “नेटिव की क्या सनद है साहब कहे तो मानूँ” नूरे इस्लाम ने समझा था मुनासिब पर्दा शमा -ए -ख़ामोश… Continue reading हास्य-रस -तीन / अकबर इलाहाबादी
हास्य-रस -दो / अकबर इलाहाबादी
* पाकर ख़िताब नाच का भी ज़ौक़ हो गया ‘सर’ हो गये, तो ‘बाल’ का भी शौक़ हो गया * बोला चपरासी जो मैं पहुँचा ब-उम्मीदे-सलाम- “फाँकिये ख़ाक़ आप भी साहब हवा खाने गये” * ख़ुदा की राह में अब रेल चल गई ‘अकबर’! जो जान देना हो अंजन से कट मरो इक दिन. *… Continue reading हास्य-रस -दो / अकबर इलाहाबादी
हास्य-रस -एक / अकबर इलाहाबादी
दिल लिया है हमसे जिसने दिल्लगी के वास्ते क्या तआज्जुब है जो तफ़रीहन हमारी जान ले शेख़ जी घर से न निकले और लिख कर दे दिया आप बी०ए० पास हैं तो बन्दा बीवी पास है तमाशा देखिये बिजली का मग़रिब और मशरिक़ में कलों में है वहाँ दाख़िल, यहाँ मज़हब पे गिरती है. तिफ़्ल… Continue reading हास्य-रस -एक / अकबर इलाहाबादी
चश्मे-जहाँ से हालते अस्ली छिपी नहीं / अकबर इलाहाबादी
चश्मे जहाँ से हालते असली नहीं छुपती अख्बार में जो चाहिए वह छाप दीजिए दावा बहुत बड़ा है रियाजी मे आपको तूले शबे फिराक को तो नाप दीजिए सुनते नहीं हैं शेख नई रोशनी की बात इंजन कि उनके कान में अब भाप दीजिए जिस बुत के दर पे गौर से अकबर ने कह दिया… Continue reading चश्मे-जहाँ से हालते अस्ली छिपी नहीं / अकबर इलाहाबादी
सूप का शायक़ हूँ यख़नी होगी क्या / अकबर इलाहाबादी
सूप का [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”शौक़ीन”]शायक़[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] हूँ, [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”एक किस्म का शोरबा जो पुलाव पर डाला जाता है”]यख़नी[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] होगी क्या चाहिए कटलेट, यह कीमा क्या करूँ [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”एक लेखक”]लैथरिज[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] की चाहिए, रीडर मुझे शेख़ सादी की [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”शेख़ सादी की एक क़िताब जिसमें ईश्वर का गुणगान किया गया है”]करीमा[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] ,क्या करूँ खींचते हैं हर तरफ़, तानें [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip… Continue reading सूप का शायक़ हूँ यख़नी होगी क्या / अकबर इलाहाबादी
तअज्जुब से कहने लगे बाबू साहब / अकबर इलाहाबादी
तअज्जुब से कहने लगे बाबू साहब [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”गवर्नमेन्ट”]गौरमेन्ट[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] सैयद पे क्यों मेहरबाँ है उसे क्यों हुई इस क़दर कामियाबी कि हर [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”सभा”]बज़्म[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] में बस यही [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”कथा”]दास्ताँ[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] है कभी लाट साहब हैं मेहमान उसके कभी लाट साहब का वह [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”कथा”]मेहमाँ[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] है नहीं है हमारे बराबर वह हरगिज़ दिया हमने हर सीग़े का इम्तहाँ है… Continue reading तअज्जुब से कहने लगे बाबू साहब / अकबर इलाहाबादी