हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए / अकबर इलाहाबादी

हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए मंज़िल-ए-हस्ती नहीं है दिल लगाने के लिए क्या मुझे ख़ुश आए ये हैरत-सरा-ए-बे-सबात होश उड़ने के लिए है जान जाने के लिए दिल ने देखा है बिसात-ए-क़ुव्वत-ए-इदराक को क्या बढ़े इस बज़्म में आँखें उठाने के लिए ख़ूब उम्मीदें बंधीं लेकिन हुईं हिरमाँ नसीब बदलियाँ… Continue reading हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए / अकबर इलाहाबादी

चर्ख़ से कुछ उम्मीद थी ही नहीं / अकबर इलाहाबादी

चर्ख़ से कुछ उम्मीद थी ही नहीं आरज़ू मैं ने कोई की ही नहीं मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं चाहता था बहुत सी बातों को मगर अफ़सोस अब वो जी ही नहीं जुरअत-ए-अर्ज़-ए-हाल क्या होती नज़र-ए-लुत्फ़ उस ने की ही नहीं इस मुसीबत में दिल से… Continue reading चर्ख़ से कुछ उम्मीद थी ही नहीं / अकबर इलाहाबादी

ग़म्ज़ा नहीं होता के / अकबर इलाहाबादी

ग़म्ज़ा नहीं होता के इशारा नहीं होता आँख उन से जो मिलती है तो क्या क्या नहीं होता जलवा न हो मानी का तो सूरत का असर क्या बुलबुल गुल-ए-तस्वीर का शैदा नहीं होता अल्लाह बचाए मरज़-ए-इश्क़ से दिल को सुनते हैं कि ये आरिज़ा अच्छा नहीं होता तश्बीह तेरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर… Continue reading ग़म्ज़ा नहीं होता के / अकबर इलाहाबादी

हूँ मैं परवाना मगर / अकबर इलाहाबादी

हूँ मैं परवाना मगर शम्मा तो हो रात तो हो जान देने को हूँ मौजूद कोई बात तो हो दिल भी हाज़िर सर-ए-तसलीम भी ख़म को मौजूद कोई मरकज़ हो कोई क़िबला-ए-हाजात तो हो दिल तो बे-चैन है इज़्हार-ए-इरादत के लिए किसी जानिब से कुछ इज़्हार-ए-करामात तो हो दिल-कुशा बादा-ए-साफ़ी का किसे ज़ौक़ नहीं बातिन-अफ़रोज़… Continue reading हूँ मैं परवाना मगर / अकबर इलाहाबादी

जहाँ में हाल मेरा / अकबर इलाहाबादी

जहाँ में हाल मेरा इस क़दर ज़बून हुआ कि मुझ को देख के बिस्मिल को भी सुकून हुआ ग़रीब दिल ने बहुत आरज़ूएँ पैदा कीं मगर नसीब का लिक्खा कि सब का ख़ून हुआ वो अपने हुस्न से वाक़िफ़ मैं अपनी अक़्ल से सैर उन्हों ने होश सँभाला मुझे जुनून हुआ उम्मीद-ए-चश्म-ए-मुरव्वत कहाँ रही बाक़ी… Continue reading जहाँ में हाल मेरा / अकबर इलाहाबादी

जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श / अकबर इलाहाबादी

जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श का शैदा होगा उठ भी जाएगा जहाँ से तो मसीहा होगा वो तो मूसा हुआ जो तालिब-ए-दीदार हुआ फिर वो क्या होगा कि जिस ने तुम्हें देखा होगा क़ैस का ज़िक्र मेरे शान-ए-जुनूँ के आगे अगले वक़्तों का कोई बादया-पैमा होगा आरज़ू है मुझे इक शख़्स से मिलने की बहुत नाम क्या… Continue reading जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श / अकबर इलाहाबादी

सदियों फ़िलासफ़ी की चुनाँ / अकबर इलाहाबादी

सदियों फ़िलासफ़ी की चुनाँ और चुनीं रही लेकिन ख़ुदा की बात जहाँ थी वहीं रही ज़ोर-आज़माइयाँ हुईं साइंस की भी ख़ूब ताक़त बढ़ी किसी की किसी में नहीं रही दुनिया कभी न सुल्ह पे माइल हुई मगर बाहम हमेशा बरसर-ए-पैकार-ओ-कीं रही पाया अगर फ़रोग़ तो सिर्फ़ उन नुफ़ूस ने जिन की कि ख़िज़्र-ए-राह फ़क़त शम्मा-ए-दीं… Continue reading सदियों फ़िलासफ़ी की चुनाँ / अकबर इलाहाबादी

वो हवा न रही वो चमन न रहा / अकबर इलाहाबादी

वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे वो फ़लक न रहा वो समाँ न रहा वो मकाँ न रहे वो मकीं न रहे वो गुलों में गुलों की सी बू न रही वो अज़ीज़ों में लुत्फ़ की ख़ू न रही वो हसीनों में रंग-ए-वफ़ा न रहा… Continue reading वो हवा न रही वो चमन न रहा / अकबर इलाहाबादी