कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों / अहमद मुश्ताक़

कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों पे निगाह थी न किसी का दामन-ए-चाक था न किसी की तर्फ़-ए-कुलाह थी कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ के चमक चमक के पलट गए न लहू मेरे ही जिगर में था न तुम्हारी ज़ुल्फ़-ए-सियाह थी दिल-ए-कम-अलम पे वो कैफ़ियत के ठहर सके न गुज़र सके न हज़र ही… Continue reading कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों / अहमद मुश्ताक़

कहाँ की गूँज दिल-ए-ना-तवाँ में रहती है / अहमद मुश्ताक़

कहाँ की गूँज दिल-ए-ना-तवाँ में रहती है के थरथरी सी अजब जिस्म ओ जाँ में रहती है क़दम क़दम पे वही चश्म ओ लब वही गेसू तमाम उम्र नज़र इम्तिहाँ में रहती है मज़ा तो ये है के वो ख़ुद तो है नए घर में और उस की याद पुराने मकाँ में रहती है पता… Continue reading कहाँ की गूँज दिल-ए-ना-तवाँ में रहती है / अहमद मुश्ताक़

इन मौसमों में नाचते गाते रहेंगे हम / अहमद मुश्ताक़

इन मौसमों में नाचते गाते रहेंगे हम हँसते रहेंगे शोर मचाते रहेंगे हम लब सूख क्यूँ न जाएँ गला बैठ क्यूँ न जाए दिल में हैं जो सवाल उठाते रहेंगे हम अपनी रह-ए-सुलूक में चुप रहना मना है चुप रह गए तो जान से जाते रहेंगे हम निकले तो इस तरह के दिखाई नहीं दिए… Continue reading इन मौसमों में नाचते गाते रहेंगे हम / अहमद मुश्ताक़

हर लम्हा ज़ुल्मतों की ख़ुदाई का वक़्त है / अहमद मुश्ताक़

हर लम्हा ज़ुल्मतों की ख़ुदाई का वक़्त है शायद किसी की चेहरा-नुमाई का वक़्त है कहती है साहिलों से ये जाते समय की धूप हुश्यार नद्दियों की चढ़ाई का वक़्त है होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए ये वक़्त क़ैदियों की रिहाई का वक़्त है कोई भी वक़्त हो कभी होता नहीं जुदा… Continue reading हर लम्हा ज़ुल्मतों की ख़ुदाई का वक़्त है / अहमद मुश्ताक़

हाथ से नापता हूँ दर्द की गहराई को / अहमद मुश्ताक़

हाथ से नापता हूँ दर्द की गहराई को ये नया खेल मिला है मेरी तन्हाई को था जो सीने में चराग़-ए-दिल-पुर-ख़ूँ न रहा चाटिए बैठ के अब सब्र ओ शकेबाई को दिल-ए-अफ़सुर्दा किसी तरह बहलता ही नहीं क्या करें आप की इस हौसला-अफ़ज़ाई को ख़ैर बद-नाम तो पहले भी बहुत थे लेकिन तुझ से मिलना… Continue reading हाथ से नापता हूँ दर्द की गहराई को / अहमद मुश्ताक़

दुनिया में सुराग़-ए-रह-ए-दुनिया नहीं मिलता / अहमद मुश्ताक़

दुनिया में सुराग़-ए-रह-ए-दुनिया नहीं मिलता दरिया में उतर जाएँ तो दरिया नहीं मिलता बाक़ी तो मुकम्मल है तमन्ना की इमारत इक गुज़रे हुए वक़्त का शीशा नहीं मिलता जाते हुए हर चीज़ यहीं छोड़ गया था लौटा हूँ तो इक धूप का टुकड़ा नहीं मिलता जो दिल में समाए थे वो अब शामिल-ए-दिल हैं इस… Continue reading दुनिया में सुराग़-ए-रह-ए-दुनिया नहीं मिलता / अहमद मुश्ताक़

दिलों की ओर धुआँ सा दिखाई देता है / अहमद मुश्ताक़

दिलों की ओर धुआँ सा दिखाई देता है ये शहर तो मुझे जलता दिखाई देता है जहाँ के दाग़ है याँ आगे दर्द रहता था मगर ये दाग़ भी जाता दिखाई देता है पुकारती हैं भरे शहर की गुज़र-गाहें वो रोज़ शाम को तन्हा दिखाई देता है ये लोग टूटी हुई कश्तियों में सोते हैं… Continue reading दिलों की ओर धुआँ सा दिखाई देता है / अहमद मुश्ताक़

दिल में वो शोर न आँखों में वो नम रहता है / अहमद मुश्ताक़

दिल में वो शोर न आँखों में वो नम रहता है अब तप-ए-हिज्र तवक़्क़ो से भी कम रहता है कभी शोले से लपकते थे मेरे सीने में अब किसी वक़्त धुआँ से कोई दम रहता है क्या ख़ुदा जाने मेरे दिल को हुआ तेरे बाद न ख़ुशी इस में ठहरती है न ग़म रहता है… Continue reading दिल में वो शोर न आँखों में वो नम रहता है / अहमद मुश्ताक़

छिन गई तेरी तमन्ना भी तमन्नाई से / अहमद मुश्ताक़

छिन गई तेरी तमन्ना भी तमन्नाई से दिल बहलते हैं कहीं हौसला-अफ़ज़ाई से कैसा रोशन था तेरा नींद में डूबा चेहरा जैसे उभरा हो किसी ख़्वाब की गहराई से वही आशुफ़्ता-मिज़ाजी वही ख़ुशिय़ाँ वही ग़म इश्क़ का काम लिया हम ने शनासाई से न कभी आँख भर आई न तेरा नाम लिया बच के चलते… Continue reading छिन गई तेरी तमन्ना भी तमन्नाई से / अहमद मुश्ताक़

चमक दमक पे न जाओ खरी नहीं कोई शय / अहमद मुश्ताक़

चमक दमक पे न जाओ खरी नहीं कोई शय सिवाए शाख़-ए-तमन्ना हरी नहीं कोई शय दिल-ए-गुदाज़ ओ लब-ए-ख़ुश्क ओ चश्म-ए-तर के बग़ैर ये इल्म ओ फ़ज़्ल ये दानिश्वरी नहीं कोई शय तो फिर ये कशमकश-ए-दिल कहाँ से आई है जो दिल-गिरफ़्तगी ओ दिलबरी नहीं कोई शय अजब हैं वो रुख़ ओ गेसू के सामने जिन… Continue reading चमक दमक पे न जाओ खरी नहीं कोई शय / अहमद मुश्ताक़